NASA: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर गाजर का हलवा, मूंग की दाल का हलवा और आम रस जैसे भारतीय व्यंजन परोसकर सुर्खियां बटोरी है। एक्सिओम-4 मिशन के तहत उन्होंने इन भारतीय व्यंजनों को अंतरिक्ष में पहुंचाया और बाकी साथियों के साथ मिलकर खाया। धरती से सैंकडों किलोमीटर दूर ये स्वाद सबको खूब भाया।
लेकिन अब सवाल ये है कि अंतरिक्ष में आखिर खाना जाता कैसे है? सबसे पहले खाने को पका कर उसे सील किया जाता है। लंबे समय तक सुरक्षित रखने और किसी भी तरह के संक्रमण से बचाने के लिए उसका पानी सूखा दिया जाता है। इसके अलावा उसे पूरी तरह से कीटाणुरहित किया जाता है।
खाने से पहले उन्हें विशेष अंतरिक्ष उपकरणों का इस्तेमाल करके गर्म किया जाता है। तैरते हुए टुकड़े खतरनाक हो सकते हैं इसलिए खाने को सीधे पाउच से खाया जाता है। सबसे जरूरी बात ये है कि खाने को वैक्यूम पाउच या नाइट्रोजन में पैक किया जाता है। अंतरिक्ष में ले जाने के लिए खाना सुरक्षा, पोषण समेत कई जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। अंतरिक्ष यात्रियों को स्वस्थ और घर से जुड़े रहने के लिए खुद से मेन्यू बनाना पड़ता है।
अंतरिक्ष के लिए खाना पृथ्वी पर बड़ी ही सावधानी से तैयार किया जाता है। फिर इसे कार्गो मॉड्यूल में लोड किया जाता है। फ्लेक्सिबल पैकेजिंग और भंडारण से खाने को सुरक्षित रखा जाता है। शुभांशु शुक्ला के भारतीय व्यंजन जैसे गाजर का हलवा शून्य गुरुत्वाकर्षण, भंडारण और अंतरिक्ष में दोबारा गर्म करने के लिए तैयार किए गए थे।