Maharashtra: महाराष्ट्र के लातूर जिले के 65 साल के एक किसान बैल या ट्रैक्टर का खर्च वहन करने में असमर्थ होने के चलते सूखाग्रस्त क्षेत्र में अपनी सूखी जमीन जोतने के लिए पारंपरिक हल को खुद ही खींचने को मजबूर हैं।
सरकार और राजनेता हालांकि खेती के आधुनिकीकरण की बातें करते हैं और साल दर साल कर्जमाफी का वादा करते हैं, लेकिन अंबादास गोविंद पवार जैसे किसानों के लिए यह भरोसा केवल कागजों तक ही सीमित रह जाता है।
बैल या ट्रैक्टर का खर्च वहन करने में असमर्थ होने के कारण हाडौल्टी गांव के किसान अपनी जमीन जोतने के लिए खुद ही पारंपरिक हल खींचते हैं। पवार के पास सिर्फ 2.5 एकड़ सूखी जमीन है। वो थका देने वाले इस मुश्किल काम में पिछले सात-आठ सालों से लगे हुए हैं। सोशल मीडिया पर सामने आए एक वीडियो में पवार अपनी पत्नी के साथ सूखी जमीन पर हल खींच रहे हैं और थके हुए दिखायी दे रहे हैं।
65 साल के पवार ने कहा, ‘‘मैं रुक नहीं सकता। मेरी बाहें कांपती हैं, बोझ के तले मेरे पैर जवाब देने लगते हैं, कभी-कभी गर्दन भी थक जाती है…लेकिन ज़िंदगी ने हमें कोई विकल्प नहीं दिया।’’
पवार का बेटा पुणे में छोटा-मोटा काम करता है और बेटी विवाहित है। बैल का खर्च वहन करने या ट्रैक्टर किराये पर लेने की हैसियत नहीं होने के चलते पवार खुद ही हल खींचते हैं। इस काम में उनकी 60 साल की पत्नी मदद करती हैं।
ट्रैक्टर से खेत जोतने पर रोज़ाना लगभग 2,500 रुपये का खर्च आता है। ये दंपति शारीरिक थकावट और उम्र की सीमाओं की परवाह किए बिना इस मुश्किल काम को अंजाम दे रहा है, ताकि वो अपनी बहू और दो पोतों की मदद कर सके।
अंबादास गोविंद पवारला ने कहा कि हमें आपके खर्चों का ध्यान रखना होगा, विशेषकर बढ़ती कृषि लागत को देखते हुए। खर्च बहुत बढ़ गया है, बीज और खाद के दाम बढ़ गए हैं। सोयाबीन का एक बैग 3000 रुपए का हो गया है। खाद का एक पैकेट 1200 रुपए का है। इसमें क्या बचता है? जो भी हम कमाते हैं, वो खर्च में चला जाता है।”
इसके साथ ही अंबादास गोविंद पवार की पत्नी ने बताया कि हम किसी तरह इसका प्रबंध करते हैं, क्योंकि ये लगभग 20,000 रुपये आती है। कमाई बहुत कम है क्योंकि हम इसे मैन्युअल रूप से करते हैं, हम किसी तरह खर्चों का प्रबंधन करते हैं।