Harsil valley: बर्फीली वादियों में बसा हर्षिल, एक अंग्रेज ने की सेब की खेती की शुरुआत

Harsil valley: उत्तराखंड की बर्फीली वादियों में बसा हर्षिल, जहां हर साल हजारों सैलानी प्राकृतिक खूबसूरती को देखने पहुंचते हैं। लेकिन हर्षिल की पहचान सिर्फ पर्यटन तक सीमित नहीं है, यहां की मिट्टी में बसी है सेब और राजमा की मिठास, मगर क्या आप जानते हैं कि हर्षिल में सेब की खेती की शुरुआत एक अंग्रेज ने की थी.

एक ऐसा विदेशी जो भागकर यहां आया और एक राजा की तरह रहा और आखिर में एक लोककथा बन गया, उसका नाम था फ्रेडरिक विल्सन।

19वीं सदी के आसपास, ब्रिटिश सेना से भागा विल्सन छिपते-छिपते हर्षिल पहुंचा। यहां आकर उसने जंगली जानवरों का शिकार, उनके अंगों का विदेशों में व्यापार और देवदार की लकड़ी की तस्करी शुरू कर दी। कुछ ही सालों में वह इतना अमीर हो गया कि उत्तर भारत के सबसे संपन्न लोगों में गिना जाने लगा। जहां पहले इस घाटी के लोग तिब्बत के साथ व्यापार करते थे, विल्सन के आने के बाद वह व्यापार पूरी तरह खत्म हो गया।

पहले लोग तिब्बत जाया करते थे, लेकिन विल्सन ने सब रोक दिया, लेकिन सेब की खेती उसी ने सिखाई थी आज भी वही चल रहा है।

अपनी पत्नी के देहांत के बाद, विल्सन ने स्थानीय महिला गुलाबो देवी से विवाह किया, लेकिन संतान न होने पर उसने एक और विवाह रायजादा नामक स्त्री से किया, जिससे उसे दो पुत्र हुए। हर्षिल में उसने ‘विल्सन मनी’ नाम की अपनी मुद्रा चलवाई, जिससे वह लकड़ी के कारोबार में मजदूरों को भुगतान करता था। यही लकड़ी बाद में रेलवे ट्रैक निर्माण में भी इस्तेमाल हुई, जिससे भारत में रेलवे के विस्तार में उसकी अहम भूमिका रही।

विल्सन ने यहां सेब की खेती की शुरुआत करवाई और आज भी उसके नाम पर सेब की एक खास किस्म हर्षिल में उगाई जाती है। कुछ लोग उसे हर्षिल का राजा मानते हैं तो कुछ लुटेरा, आज भी उसका बंगला विल्सन हाउस  यहां मौजूद है। हालांकि एक बार आग लगने से इसका बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था, जिसे अब वन विभाग ने पुनर्निर्मित किया है, इतिहास से जुड़ी यह जगह काफी दिलचस्प है।

19वीं सदी में जब लोग गंगोत्री धाम पैदल जाया करते थे तो नदियों पर कई पुलों का निर्माण भी विल्सन ने ही करवाया था। विल्सन की कहानी यहीं खत्म नहीं होती, वह एक लोककथा में तब्दील हो गया। कहते हैं एक बार उसने यहां के आराध्य सोमेश्वर देवता को तलवारों पर चलते देखा और उन्हें चुनौती दे डाली कि वे उसके बंगले पर आकर ऐसा कर दिखाएं। निर्धारित दिन पर जब तेज़ धार वाली तलवारें बिछा दी गईं, तो देवता अपने पश्वा पर अवतरित हुए और उन तलवारों पर चलकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।

विल्सन उनके आगे नतमस्तक हो गया, पर देवता ने उसे श्राप दिया, मुझे मेरे स्थान से बुलाकर अपमान किया है, इसलिए तेरे वंश का विनाश होगा। कुछ समय बाद ही दोनों पुत्रों की बीमारी से मृत्यु, फिर पत्नी की मौत, और उसके बाद विल्सन की खुद की लंबी बीमारी से मृत्यु हो गई। आज भी स्थानीय लोग दावा करते हैं कि विल्सन की आत्मा रात के समय हर्षिल में भटकती है। यह सच है कि विल्सन ने हर्षिल को सेब की पहचान दी, बागवानी सिखाई, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि उसके और उसके परिवार के अत्याचारों की यादें आज भी लोगों के ज़हन में जिंदा हैं।

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