Shukravar Vrat: शुक्रवार व्रत हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत विशेष रूप से मां संतोषी माता, देवी लक्ष्मी और शुक्र ग्रह को समर्पित होता है। शुक्रवार व्रत रखने की परंपरा मुख्य रूप से सुख-समृद्धि, वैवाहिक जीवन में सुख, संतान सुख, आर्थिक समस्याओं से मुक्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए की जाती है। इसे विशेष रूप से महिलाएं रखती हैं, लेकिन पुरुष भी इसे रख सकते हैं।
शुक्रवार व्रत से जुड़ी सबसे प्रचलित कथा संतोषी माता की है। कथा के अनुसार, एक निर्धन महिला ने अपनी जीवन की कठिनाइयों से परेशान होकर संतोषी माता का व्रत करना शुरू किया। उसने लगातार 16 शुक्रवार तक माता का व्रत रखा और माता को गुड़-चना का भोग अर्पित किया। धीरे-धीरे उसके जीवन में सुधार आया, आर्थिक स्थिति अच्छी हुई और परिवार में भी खुशहाली आ गई। तभी से यह व्रत लोकमान्यता प्राप्त हुआ और आज भी लाखों महिलाएं इस व्रत को श्रद्धा के साथ करती हैं।
इस व्रत में प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थान पर माता की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। पूजा के लिए पीली मिट्टी की वेदी बनाई जाती है और माता को केवल गुड़-चना का भोग अर्पित किया जाता है। खट्टा और नमक निषेध होता है। व्रती दिनभर उपवास रखता है और संध्या के समय संतोषी माता की कथा सुनकर पूजा संपन्न करता है। यह व्रत आत्म-संयम, श्रद्धा और संतोष की भावना को प्रबल करता है। मान्यता है कि इस व्रत से शुक्र ग्रह मजबूत होता है जिससे व्यक्ति के जीवन में सौंदर्य, प्रेम, कला और भौतिक समृद्धि बढ़ती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना गया है जिनके विवाह में विलंब हो रहा हो या वैवाहिक जीवन में कलह हो। श्रद्धा और नियम से किया गया शुक्रवार व्रत निश्चित रूप से शुभ फल प्रदान करता है।
मान्यता है कि शुक्रवार व्रत के प्रभाव से शुक्र ग्रह मजबूत होता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में प्रेम, कला, सौंदर्य और ऐश्वर्य बढ़ता है। वहीं जिन लोगों के विवाह में विलंब हो रहा हो या वैवाहिक जीवन में समस्याएं हो, उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि आत्मनियंत्रण, संयम और मन की शक्ति को भी प्रबल बनाता है।
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