Supreme Court: मौलिक अधिकारों का दायरा बढ़ाने में उच्चतम न्यायालय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई- CJI

Supreme Court:  भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मौलिक अधिकारों के दायरे को बढ़ाने में ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ निभाई है। उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय सूचना प्रौद्योगिकी, मध्यस्थता और चुनावी प्रक्रियाओं से संबंधित जटिल मुद्दों पर निर्णय देकर समाज की उभरती जरूरतों के प्रति गंभीर रहा है।

प्रधान न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि महत्वपूर्ण बात ये है कि इसने जनहित याचिकाओं के माध्यम से, सबसे अधिक हाशिए पर पड़े लोगों के लिए अपने दरवाजे खोले हैं। प्रधान न्यायाधीश ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) द्वारा आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे जिसे शीर्ष न्यायालय के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक पुस्तक का विमोचन करने के लिए आयोजित किया गया था।

उच्चतम न्यायालय 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया था और दो दिन बाद इसका उद्घाटन किया गया था, उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की 75 वर्ष की यात्रा को भारतीय संविधान की यात्रा से अलग नहीं किया जा सकता है। उनके मुताबिक दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक जीवन देता है और दूसरा ये सुनिश्चित करता है कि जीवन सम्मान, न्याय और स्वतंत्रता के साथ बना रहे।

सीजेआई जस्टिस बी. आर. गवई ने बताया कि “पिछले साढ़े सात दशकों में हमने संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के बीच एक अटूट बंधन देखा है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्माण संविधान द्वारा किया गया था और वो इसके प्रावधानों के तहत कार्य करता है, और बदले में, उसने संविधान की सबसे महत्वपूर्ण ढाल के रूप में कार्य किया है।”

‘‘ इस अर्थ में सर्वोच्च न्यायालय की 75 वर्ष की यात्रा को भारतीय संविधान की यात्रा से अलग नहीं किया जा सकता है। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक जीवन देता है और दूसरा यह सुनिश्चित करता है कि जीवन सम्मान, न्याय और स्वतंत्रता के साथ बना रहे।’

“सर्वोच्च न्यायालय को एक बहुत बड़ा संवैधानिक दायित्व दिया गया था। इसके अनुपालन में, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की आधारभूत विशेषताओं की रक्षा के लिए केशवानंद भारती मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में मूल ढांचे के सिद्धांत को विकसित किया।”

“पिछले कुछ वर्षों में इसने मौलिक अधिकारों के दायरे को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेष रूप से ‘जीवन के अधिकार’ और अनुच्छेद 21 की व्यापक और प्रगतिशील व्याख्या करके, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न आवश्यक अधिकारों को मान्यता मिली है, जैसे कि निजता का अधिकार, सम्मान का अधिकार, न्याय का अधिकार, भोजन का अधिकार, आश्रय का अधिकार, पीने योग्य पानी का अधिकार, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार आदि।”

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