Prayagraj: मोहिनी एकादशी के मौके पर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर पवित्र डुबकी लगाने पहुंचे।
श्रद्धालु एकादशी पर व्रत रखते हैं, जो आमतौर पर महीने में दो बार आती है। मोहिनी एकादशी के मौके पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने सुंदर अप्सरा मोहिनी का रूप धारण किया था।
गोपाल जी महाराज, पुजारी “एकादशी हमारे यहां होती है 24, आज के एकादशी क नाम है मोहिनी एकादशी। भगवान एक दिन मोहिनी रूप धारण किया था, राक्षसों को अमृत बांटने और जहर बांटने के लिए था। इसी को दर्शन करने सारे देवता पधारे और भगवान के इस रूप का हम दर्शन करें और सब वहां भगवान के रूप के सब इतने मोहित हो गए। आवाक हो गए सब लोगों ने। आज वो एकादशी का दिन भी है। प्रयागराज में डुबकी इस दिन भगवान के नाम से प्रयाग में स्नान करते हैं, पूजा करते हैं। ब्राह्मणों को जल से भरा हुआ घड़ा देते हैं। पंखा देते हैं, फल देते हैं। उससे उनका परिवार का कल्याण होता है। उनकी मनोकामनाएं पूरा होती हैं।
मान्यता है कि मोहिनी एकादशी पर व्रत रखने और विधि-विधान से श्रीहरि की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गुरुवार का दिन पड़ने से इस बार एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ गया है, यह दोनों ही तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित हैं।
श्रद्धालुओ का कहना है कि “मोहिनी एकादशी है। इसका बहुत बड़ा माना जाता है। एकादशी, आदमी क्या कहते हैं, जो रहता है वो अपने लिए रहता है क्योंकि हर देवी देवता को बाल बच्चे के लिए तो अपने लिए रहता है। व्यक्तिगत और गंगा मैया का महत्व इसमें ये है अन्न नहीं खाया जाता। फलाहार लिया जाता है। चावल का ज्यादा दोष है इसमें।
“आज मोहिनी एकादशी है, लक्ष्मी नारायण जी का व्रत है। ये जो है हम लोग करते हैं। इसका बहुत महत्व माना जाता है, विशेष स्नान मोहिनी एकादशी का है और सनातन धर्म में तो हर एकादशी का बहुत महत्व है। लेकिन अपने हर एकादशी का एक अपना ही महत्व है। बस, तो हम लोग संगम स्नान करने आए हैं।
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के मुताबिक, देवताओं और राक्षसों ने अमृत पाने के लिए मिलकर समुद्र मंथन किया था जिससे अमृत और विष दोनों निकले। हालांकि अमृत कलश निकलते ही देवताओं से असुरों ने उसे छीन लिया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लिया और असुरों से बचाते हुए सभी देवताओं को अमृत पान करा दिया, वहीं संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पिया।