Breaking News: मोदी सरकार ने जाति जनगणना को दी मंजूरी, मूल जनगणना के साथ होगी शुरू

Breaking News: केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़े शामिल करने की मंजूरी दी है। यह कदम भारतीय समाज की सामाजिक-आर्थिक संरचना को बेहतर समझने और नीति निर्माण में सुधार के उद्देश्य से उठाया गया है। भारत में पिछड़ी जातियों (OBCs), अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) की वास्तविक संख्या का पता नहीं है, जिससे आरक्षण और सामाजिक न्याय की योजनाओं में असमानता उत्पन्न होती है। जाति आधारित आंकड़े उपलब्ध होने से इन वर्गों की वास्तविक स्थिति का आकलन संभव होगा, जिससे नीतियों में सुधार और न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा।

जनगणना 1951 से प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर की जाती थी, लेकिन कोविड-19 (COVID-19) महामारी के कारण इसमें देरी हुई। अब सरकार ने 2025 की शुरुआत में जनगणना प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है, और इसके परिणाम 2026 में घोषित किए जाएंगे। जाति आधारित आंकड़े एक अतिरिक्त कॉलम के रूप में जनगणना में शामिल किए जाएंगे, जिससे पिछड़ी जातियों की संख्या का सटीक आंकलन संभव होगा। केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भाजपा (BJP) ने कभी जाति जनगणना का विरोध नहीं किया, और यह निर्णय उचित समय पर लिया जाएगा। वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने जाति आधारित आंकड़ों की मांग की है, ताकि आरक्षण और सामाजिक न्याय की योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।

कैबिनेट की बैठक के बाद मंत्रिमंडल के फैसलों पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने आज फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि कांग्रेस कर पूर्ववर्ती सरकारों ने हमेशा से ही जातिगत जनगणना का विरोध किया है। आजादी के बाद से ही जाति को जनगणना की किसी भी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया कि जातिगत जनगणना को कैबिनेट के सामने रखा जाएगा। इसेक बाद एक मंत्रीमंडल समूह का गठन किया गया। इसमें ज्यादातर राजनीतिक दलों ने जातिगत जनगणना की संस्तुति की। इसके बावजूद भी कांग्रेस ने महज खानापूर्ति का ही काम किया। उसने महज सर्वे कराना ही उचित समझा।

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि कांग्रेस और उसके इंडी गठबंधन के सहयोगियों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है। जनगणना का विषय संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 पर अंकित है। यह केंद्र का विषय है। हालांकि, कुछ राज्यों ने जातियों की गणना के लिए सर्वेक्षण सुचारू रूप से किया है, जबकि राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में भ्रांति फैली है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीति के दबाव में न आए। हमें जाति जनगणना के लिए एक मंच तैयार करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और समाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश का विकास भी निर्बाध रूप से चलती रहेगी।

भारत में हर दस साल में जनगणना होती है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी। 1947 में आजादी मिलने के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी और आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, जबकि लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष और साक्षरता दर 74.04 फीसदी था। जाति जनगणना का निर्णय भारतीय समाज में समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे नीति निर्धारण में पारदर्शिता आएगी और सामाजिक न्याय की योजनाओं को सटीकता से लागू किया जा सकेगा। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी हो सकती हैं, जिन्हें समय रहते संबोधित करना आवश्यक होगा।

 

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