Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में दुर्ग से करीब 25 किलोमीटर दूर कंदरका गांव में डेढ़ सौ साल पुराना तालाब है, गांव के लोग बताते हैं कि ये तालाब कभी नहीं सूखा, तालाब की बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है। बताया जाता है कि बरसों पहले यहां भुरमिन गौटियन नाम का जमींदार था। एक दिन उसकी पत्नी पड़ोसी गांव में नहा रही थी। वहां उसका मजाक उड़ाया गया और वो रोती हुई घर लौटी, इसपर जमींदार बेहद दुखी हुआ।
उन दिनों कंदरका में कोई तालाब नहीं था। महिलाओं को पानी लाने या नहाने के लिए पास के गांवों में जाना पड़ता था। भुरमिन गौटियन के वंशजों में से एक ने बताया कि कैसे इस घटना के बाद गांव में तालाब खुदवाया गया।
जीवनपाल, भुरमिन गौटियन का परपोते “लोग सिर धोने के लिए, बाल धोने के लिए मिट्टी लगाते थे। मिट्टी लगाई सिर पे। उनको ये बात काफी बुरा लगा और वो बिना नहाए, बिना बाल की मिट्टी धोए वो वापस घर आ गईं। और आकर जो भुरमिन गौटियन है, अपने पति को बताई। और काफी गुस्से में थी। नाराज थी। तो बात यहां तक पहुंच गई कि जब तक मेरे लिए इस गांव में तालाब नहीं बनेगा, तालाब की खुदाई नहीं होगी, तब तक मैं नहाउंगी नहीं।”
भुरमिन गौटियन ने पत्नी की कहे पर फौरन अमल करने का फैसला किया, उन्होंने करीब 100 मजदूरों की मदद से अपनी देखरेख में तालाब खुदवाया। इस काम में करीब पांच महीने लगे। तब से ये तालाब न सिर्फ स्थानीय लोगों, बल्कि पड़ोसी गांवों के लिए भी जीवन रेखा है।
ग्रामीण नरोत्तम पाल ने बताया कि “अन्य गांव की अपेक्षा हमारे गांव में जो पानी की जो समस्या है, वो बहुत कम है, क्योंकि तालाब का लेवल बराबर रहता है। उसमें कई गांव, जैसे चार-पांच गांव हैं, उनको इस तालाब से बहुत मदद मिलती है। किसानों के लिए, सिंचाई के लिए, धान के लिए- ऐसा है ये तालाब, किसान को फायदा है। हम लोग को फायदा है, नहाने-धोने का फायदा है। किसान पानी से किसानी करते हैं। कुछ कम पड़ गया तो ये पूरा करता है। इतना फायदा है।”
कंदरका में रहने वालों को इस तालाब पर फख्र है, जो ना सिर्फ उनकी जीवन रेखा है, बल्कि विरासत का हिस्सा भी है, लोगों ने पीढ़ियों से तालाब को अतिक्रमण से बचाया है, संरक्षित किया है और आज भी उसका रखरखाव कर रहे हैं।