Myanmar: राहत अभियान के दौरान भारतीय वायुसेना को जीपीएस स्पूफिंग का सामना करना पड़ा, क्या है ये खतरा

Myanmar: भूकंप प्रभावित म्यांमार में ऑपरेशन ब्रह्मा के तहत भारतीय वायुसेना के राहत अभियान के दौरान विमानों को ‘जीपीएस स्पूफिंग’ का सामना करना पड़ा, ये घटना 29 मार्च से एक अप्रैल के बीच म्यांमार के हवाई क्षेत्र से उड़ान भरते समय भारतीय वायुसेना के विमानों के साथ हुई। भारतीय डिफेंस प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, विमान को बीच हवा में अचानक जीपीएस सिग्नल में अड़चन का सामना करना पड़ा, जिससे पायलटों को तुरंत बैकअप इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम पर स्विच करना पड़ा। ये विमान म्यांमार के भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण राहत सामग्री, फील्ड अस्पताल और बचाव दल पहुंचा रहे थे।

अनिल खोसला, सेवानिवृत्त एयर मार्शल “जो बात खुले मीडिया में सामने आई है वो ये है कि 29 मार्च 2005 को C-130, विमान भारतीय एयरबेस से यांगून के लिए उड़ान भर रहा था। उसे गलत जीपीएस सिग्नल के कारण नेविगेशन संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, इसका मतलब है कि जीपीएस में इलेक्ट्रॉनिक रूप से हस्तक्षेप किया जा रहा था और बाद में दूसरे C-130 विमान भी इससे प्रभावित हुए। उन्हें चेतावनी दी गई और उन्हें भी नेविगेशन उपकरण में व्यवधान का सामना करना पड़ा। तो ये एक अकेली घटना नहीं थी, आप जानते हैं, छह विमानों को जीपीएस में इसी तरह की बाधा का सामना करना पड़ा। तो, ये जीपीएस स्पूफिंग की ओर इशारा करता है जो नेविगेशन के लिए जीपीएस में हस्तक्षेप कर गलत सिग्नल दे रहा था।”

जीपीएस स्पूफिंग एक प्रकार का साइबर हमला है जो किसी विमान के जीपीएस रिसीवर में हेरफेर करता है कि वो गलत स्थान पर है, इसके लिए वो नकली सैटेलाइट सिग्नल भेजता है। इससे भ्रामक नेविगेशन डेटा बनता है, जिससे उड़ान पथों के लिए गंभीर जोखिम पैदा होता है। सेवानिवृत्त एयर मार्शल अनिल खोसला ने कहा कि “इलेक्ट्रॉनिक युद्ध मूल रूप से सॉफ्ट किल विकल्प के अंतर्गत आता है। तो, इस जीपीएस स्पूफिंग में, जो होता है वो ये है कि सिग्नल आर्टिफिशियली जेनरेट होते हैं और वे जीपीएस में हस्तक्षेप करते हैं। आप ऐसे क्षेत्र में उतर सकते हैं जहां ये जरूरी नहीं है या दो प्लेटफॉर्मों के बीच दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं।”

हालांकि भारतीय वायुसेना ने जीपीएस स्पूफिंग को लेकर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सूत्रों को शक है कि इसमें क्षेत्रीय दुश्मन का हाथ है, जिसका मकसद भारत के साइबर और नेविगेशनल सिस्टम की कमजोरियों को टेस्ट करना है। ऐसे हमलों की जांच करना मुश्किल है, खासकर जब वे विदेशी हवाई क्षेत्र में होते हैं।

सेवानिवृत्त एयर मार्शल अनिल खोसला ने कहा कि “म्यांमार में स्थिति काफी जटिल है। आपके पास बाहरी प्रभाव है, आपके पास इसमें चीन का प्रभाव है, चीन की मौजूदगी इन द्वीपों के दक्षिण में भी है, चीनी मौजूदगी वहां है। फिर अराकान सेना और सेना और सरकार के बीच जो आंतरिक उथल-पुथल चल रही है, वो भी सकारात्मक है। बांग्लादेश भी एक और फैक्टर है जो निकट है। इस मामले में, पायलटों ने जीपीएस पर भरोसा नहीं किया और उन्होंने इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम जैसे नेविगेशन के दूसरे साधनों पर स्विच किया और बिना किसी अप्रिय घटना के मिशन पूरा किया। लेकिन ये एक गंभीर मुद्दा है, आप जानते हैं, जहां जीपीएस या नेविगेशनल मदद को किसी व्यक्ति द्वारा इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल द्वारा बाधित किया जा रहा है।”

चुनौतियों के बावजूद, सभी छह विमानों ने वैकल्पिक नेविगेशन प्रोटोकॉल का इस्तेमाल कर अपने मिशन को सुरक्षित रूप से पूरा किया। हालांकि, इस घटना ने विमानन साइबर सुरक्षा और जवाबी उपायों की तत्काल जरूरत के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। इस घटना ने भारत के लिए विमानन में अपनी साइबर रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत को जाहिर किया है। रक्षा मंत्रालय से परिवहन और सामरिक विमानन मिशनों के लिए साइबर लचीलेपन पर उच्च स्तरीय समीक्षा करने की उम्मीद है।

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