Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में वाराणसी की समृद्ध संस्कृति और शिल्प विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। हाल में यहां के कई पारंपरिक उत्पादों को जी आई टैग से नवाजा गया है। इस सूची में ताजा हैं, बनारसी शहनाई। भारतीय शास्त्रीय संगीत में संगत के रूप में इस्तेमाल होने वाले तबले को भी यही सम्मान मिला है। बनारसी शहनाई के लिए GI सर्टिफिकेट खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के मशहूर कलाकार रमेश कुमार को सौंपा। ये जन कार्यक्रम मेहंदी गंज में आयोजित हुआ था।
प्रधानमंत्री ने 11 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के 21 पारंपरिक उत्पादों को GI टैग से नवाजा। समृद्ध परंपराओं के अनुरूप शहनाई अर्से से भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक रही है। दिग्गज शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने इस वाद्य को दुनिया भर में पहचान दिलाई। पवित्र मानी जाने वाली शहनाई खास कर मंदिरों में और शादियों के मौके पर बजाई जाती है। वाराणसी में गंगा घाट पर अर्से से शहनाई की धुन गूंजती रही है।
भारत के GI मैन के रूप में विख्यात पद्मश्री रजनी कांत ने 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 155 स्थानीय उत्पादों के लिए GI दर्जा हासिल करने में अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ ही राज्य को देश के सबसे ज्यादा GI टैग युक्त उत्पाद पाने का सम्मान हासिल हुआ है। अब तक प्रदेश के 77 उत्पादों को GI टैग मिल चुका है। खास बात है कि काशी क्षेत्र GI का वैश्विक केंद्र बनकर उभरा है। यहां के 32 उत्पादों को प्रतिष्ठित सर्टिफिकेट का सम्मान मिला है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आज यूपी पूरे देश में GI टैगिंग में नंबर वन है यानी हमारी कला, हमारी चीजें, हमारे हुनर की अब तेजी से अंतरराष्ट्रीय पहचान बन रही है। अब तक वाराणसी और उसके आसपास के जिलों में 30 से ज्यादा उत्पादों को GI टैग मिला है। वाराणसी का तबला, शहनाई, दीवारों पर बनने वाली पेंटिंग, ठंडाई, लाल भरवा मिर्च लाल पेड़ा, तिरंगा बर्फी हर चीज को मिला है पहचान का नया पासपोर्ट GI टैग।”
GI विशेषज्ञ के डॉ. रजनीकांत ने कहा, “यहां काशी में संगीत का ये बड़ा प्राचीनतम समय का केंद्र रहा है और संगीत के वाद्य यंत्रों को GI मिला हुआ है। ये हम लोगों को समझना पड़ेगा कि GI टैग किसी वस्तु को, किसी प्रॉडक्ट को प्राप्त होता है। यहां पे शहनाई बनाने की परंपरा बड़े प्राचीन काल से रही है क्योंकि काशी में भगवान विश्वनाथ को सवेरे की आरती में जगाने का भी कार्य जो है शहनाई से प्राचीन समय से होता रहा है। देवी-देवताओं का, गंगा पूजन से लेकर बधाई से लेके सारे आयोजनों में शहनाई का प्रयोग होता है।”