Saharanpur: इरादों से रची तकदीर, दोनों हाथ न होने के बावजूद शिवम बना प्रेरणा की मिसाल

Saharanpur: दिव्यांगता अक्सर सपनों के पर कुतर देती है, लेकिन उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में रहने वाले 21 साल के शिवम ने ठान लिया कि वे अपने बुलंद इरादों की बदौलत अपने सपनों को साकार कर के ही दम लेंगे। उन्होंने काफी पहले फैसला कर लिया था कि दोनों हाथ न होने के बावजूद उन्हें अपनी तकदीर खुद लिखनी है। जब शिवम का दाखिला स्कूल में कराया गया तो सब कुछ बदल गया। स्कूल में ही उन्होंने तय कर लिया कि वे भविष्य की लकीरें अपने मजबूत इरादों की बदौलत खींचेंगे।

इस सोच के साथ वे लगातार मेहनत करते रहे, जमकर पसीना बहाते रहे और फिर एक दिन राज्य स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में उन्हें रजत पदक से नवाजा गया। साथ ही उनका चुनाव राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए हुआ। वे आज भी कड़ी मेहनत करते हैं। 800 मीटर और 1500 मीटर दौड़ का अभ्यास करते हैं। और सपना देखते हैं कि एक दिन वे जरूर ओलंपिक पदक जीतेंगे। शिवम औरों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उन्होंने साबित कर दिखाया है कि ‘रोशनी गर हो मंजूर, आंधियों में भी चिराग जलते हैं’। शिवम को क्रिकेट खेलना भी पसंद है। शिवम एक ऐसी मिसाल हैं, जो इस कहावत की तस्दीक करता है कि मजबूती जिस्म में नहीं, दिल में होनी चाहिए। इरादे मजबूत हों तो पहाड़ भी टूटते हैं और समतल सड़क बनती है।

एथलीट शिवम ने कहा, “जब मैं छह साल का था शायद छह-सात साल का, तो तब मुझे पता चला कि मेरे हाथ नहीं हैं क्योंकि उसी उम्र में सही से पता लगता है कि जब हमें थोड़ी सी होशियारी आ जाती है कि हां हमारे पास क्या है और क्या नहीं है। तो उस टाइम मुझे पता लगा कि मेरे हाथ नहीं हैं और मैं और बच्चों की तरह नहीं हूं क्योंकि वे सबके हाथ हैं और वे सब काम कर सकते हैं। जो नेचुरली सब करते हैं और मैं नहीं कर पाता था। कोच सर भी जानते हैं हमारे कि मैं पहले कैसे रनिंग करता था और मैंने अभी भी बहुत अच्छी तरह से प्रोपर रनिंग नहीं की है क्योंकि अभी भी बहुत ज्यादा डिफिकल्ट है क्योंकि जिस लेवल पर मैं सोच रहा हूं खेलने के लिए उसमें बहुत ज्यादा और मेहनत करनी पड़ेगी अभी क्योंकि सर भी कराएंगे। मेरे से ज़्यादा तो इन्हें मेरे से वो रहता है कि हां इसके लिए क्या चीज अच्छी है, क्या बेहतर है और क्या इसको और बेहतर बनाने के लिए क्या करना है। मेरा सपना है कि मैं चाहता हूं कि मैं अपने देश के लिए इंडिया के लिए गोल्ड लाऊं ओलंपिक में।

ये तैयारी बहुत बढ़िया करता है, बहुत मेहनत करता है। सुबह 2.5-तीन घंटे सुबह-शाम को दोनों टाइम करता है परमानेंट। इसका गांव कम से कम 30 किलोमीटर पड़ता है यहां से। ये मुझे एक बार अकेला बैठा था तब मुझे मिला और मैंने देखा यार बताओ इसके दोनों हाथ नहीं हैं, फिर भी मेहनत करता है। तो मैंने बोला तू मेरे पास आ जितना भी होगा मैं तेरी हेल्प भी कराउंगा, मतलब मैं तो कर नहीं पाता पर दूसरों से थोड़ा बहुत इसकी हेल्प भी कराता हूं। सर खिलाड़ी में इतना जुनून है इसमें शिवम में कि हमने आज तक नहीं देखा पूरे जिले सहारनपुर में। इंडिया में भी मुश्किल ही दिखाई देगा क्योंकि बिना हाथ के इतना बैलेंस करता है, इतनी स्पीड है बंदे के अंदर अगर इसकी थोड़ी सी कहीं से स्पॉन्सर मिल जाए या सपोर्ट मिल जाए तो इंडिया के लिए एक दिन ओलंपिक में मेडल ला सकता है ये।”

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