Telangana: हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास जंगल काटने के मामले पर सरकार ने बनाई समिति

Telangana: हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास कंचा गचिबोवली में 400 एकड़ जमीन को लेकर विवाद चल रहा है। इसी बीच मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को एक नया प्रस्ताव मिला है, जिसमें 2,000 एकड़ जमीन पर एक इको पार्क बनाने की बात है। इस पार्क में दुनिया का सबसे ऊंचा वॉचटावर बनाने की भी योजना है।

इस योजना में यूनिवर्सिटी की जमीन का इस्तेमाल करना और कैंपस को कहीं और शिफ्ट करना शामिल है। कई लोग कह रहे हैं कि ये असली जमीन के झगड़े से ध्यान हटाने की चाल है। जब इस जमीन पर एक नया प्रोजेक्ट बनाने की बात सामने आई, तो यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इसका विरोध किया। उन्हें हरियाली खत्म होने का डर है और उन्होंने जमीन लेने के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं।

पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग भी इस विरोध में शामिल हो गए हैं। उनका कहना है कि ये इलाका बहुत सारे पेड़-पौधों और जानवरों का घर है। उदय कृष्णा, जिनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई है, उन्होंने कहा कि ये कदम इसलिए जरूरी था ताकि इस इलाके को हमेशा के लिए बर्बाद होने से बचाया जा सके। ये जमीन पर्यावरण के लिए बहुत अहम है।

रिटायर्ड उस्मानिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और पर्यावरण के लिए लंबे समय से काम करने वाले पुरुषोत्तम रेड्डी ने कहा कि ये जमीन कई तरह के जानवरों और पक्षियों का घर है, इसलिए इसे बचाना जरूरी है।

तेलंगाना सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक मंत्री समिति बनाई है। ये समिति हैदराबाद यूनिवर्सिटी, समाज के लोगों, छात्रों और दूसरे पक्षों से बात करेगी ताकि कोई हल निकाला जा सके। इस बीच साइबराबाद पुलिस ने 16 अप्रैल तक उस जगह पर जाने से मना कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वहां कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।

विवाद अब भी चल रहा है, पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि ये सिर्फ पेड़ों को बचाने की बात नहीं है, बल्कि हैदराबाद के आखिरी बचे हुए जंगल जैसे इलाके को बचाने की लड़ाई है। अगर ध्यान नहीं दिया गया, तो ये इलाका भी विकास के नाम पर खत्म हो सकता है।

वात फाउंडेशन के संस्थापक उदय कृष्ण का कहना है कि “कोर्ट जाने की वजह ये थी कि हमारे पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। सरकार की मंशा साफ थी — वो ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि वहां घना जंगल है। वो ये भी नहीं मानते कि वहां कोई जानवर हैं और आज भी वो इसे नहीं मानते। उनके रवैये से साफ था कि वो उस जमीन को साफ कर देंगे, इसलिए हमें इंसाफ के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ा।”

पर्यावरणविद् और उस्मानिया विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पुरुषोत्तम रेड्डी ने कहा कि “असल नुकसान इस वजह से हो रहा है क्योंकि जंगल का इलाका कम किया जा रहा है। ये 400 एकड़ जमीन यूनिवर्सिटी के बचे हुए इलाके से जुड़ी हुई है। ये 400 एकड़ और करीब 1000 एकड़ मिलाकर एक अच्छा जंगल बनाते हैं, जहां बहुत सारे जानवर और पक्षी रहते हैं। ये सब इलाके में खुलकर आते-जाते हैं। अब अगर 400 एकड़ जमीन कम कर दी जाती है, तो ये बहुत बड़ा नुकसान होगा।”

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