UP News: दिल्ली के संसद भवन की तर्ज पर बना ये ग्राम संसद भवन है। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के चकवाली गांव में इसे बनाया गया है, गांव की प्रधान सविता देवी ने इसका निर्माण कराया है। ग्राम संसद भवन के निर्माण के बाद काफी लोग इसे देखने आ चुके हैं। इसे बनाने का मकसद लोगों में लोकतांत्रिक भावना को बढ़ावा देना है, जिससे गांव के हर नागरिक को अपनी जन भागीदारी का एहसास हो
चकवाली गांव में बने इस ग्राम संसद भवन में लोगों को एक ही जगह पर सभी आधिकारिक सेवाएं मिलती हैं। जिससे लोगों को अपने काम के लिए जगह-जगह नहीं जाना पड़ता। गांव की प्रधान सविता देवी की ये पहल ना सिर्फ चकवाली गांव के अंदर लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करती है, बल्कि ये ग्रामीण सशक्तिकरण के लिए एक बेहतरीन उदाहरण भी है। ये लोगों को शासन-प्रशासन से करीब से जोड़ती है, साथ ही जमीनी स्तर पर लोगों का गौरव और उनकी भागीदारी को बढ़ावा देती है।
ग्राम प्रधान प्रतिनिधि नकुल चौधरी ने बताया कि “ग्राम संसद भवन इसलिए बनाया गया है कि संसद भवन एक तो दिल्ली में है और वहां पर लोक सभा के मेंबर जो निर्वाचित होते हैं वो बैठते हैं और ग्राम सभा में ग्राम सभा का प्रत्येक वोटर, प्रत्येक नागरिक यहां का वो ग्राम सभा का सदस्य होता है। तो ग्राम सभा का सदस्य होने के नाते उनको भी संसद भवन जैसी दिल्ली जैसी फीलिंग आए।
हर एक व्यक्ति तो दिल्ली जा नहीं सकता। तो दिल्ली ना जा सकने वाले लोग भी संसद भवन जैसी फीलिंग अपने गांव में ही लें और अपने गांव का अंतिम व्यक्ति भी वैसे ही बैठकर उसे ऐसा महसूस हो, ऐला लगे कि वो गांव में भी संसद भवन में बैठा है।
कृषि विभाग के कर्मचारी अमित पंवार ने कहा कि “बहुत ही अच्छा ये भवन बना हुआ है। इसमें अलग से एक रूम है। इसमें लेखपाल भी और कृषि विभाग के भी सभी विभागों के कर्मचारी-अधिकारी आते हैं और प्रधान जी का बहुत सहयोग रहता है। आज ये फार्मा रजिस्ट्री की कैंप चल रहा है। इसके लिए अनाउंसमेंट करवा दिया था पूर्व में। शनिवार में भी लगा है।”
ग्रामीणों का कहना है कि “इसका तो बहुत फायदा है। पूरा विकास यहीं हो रहा है जी सब अधिकारी यहीं बैठते हैं। जगह-जगह नहीं फिरना पड़ता गांव में। आप कहीं भी जाकर देख लो कहीं भी ऐसी चीज नहीं बनी हुई है जैसी हमारे गांव में चकवाली में बनवा दी हमारे प्रधान जी ने, पहले तो दिक्कत थी जी। पहले कहीं जाना पड़ता था, फिर कहीं जाना पड़ता था। अब एक जगह काम हो रहा है सारा का सारा। इससे तो बढ़िया है ही नहीं कहीं।”)