Madhya Pradesh: उमरिया में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के पास जैविक खेती, आपदा में अवसर की मिसाल

Madhya Pradesh: साल 2020 में जब कोविड महामारी ने पूरी दुनिया में पांव पसारना शुरू किया तो आर. श्रीनिवास ने मोटी वेतन वाली अपनी नौकरी छोड़ दी। वे दुनिया भर में ऊंची पदों पर काम कर चुके थे, लेकिन इस बार नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने गांव का रुख किया। आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में।

वे IIT मुंबई से 1987 बैच के केमिकल इंजीनियर हैं, लेकिन जैविक खेती उनका पहला प्यार है। कोविड आपदा बनकर आई तो उन्होंने बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के बफर जोन में अपने पहले प्यार को अपनाना बेहतर समझा। इस घटना को करीब चार साल बीत चुके हैं। आज उस बंजर जमीन पर पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं। ये श्रीनिवास की मेहनत का नतीजा है।

श्रीनिवास ने पेड़-पौधों के लिए गोमूत्र, गोबर, पत्तियों और दूसरे प्राकृतिक अवयवों से बने जीवामृत का इस्तेमाल किया, जो जैविक खेती का आधार हैं। इस दौरान कई किसान श्रीनिवास के साथ जुड़े। उन्हें या तो प्रकृति से प्यार था, या वे अपना जीवन स्तर बेहतर बनाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल खेती के तरीके सीखना चाहते थे। कोविड महामारी के समय तक जो जमीन बंजर थी, आज वहां हरियाली छाई हुई है। वहां गाय पाले जा रही हैं, सब्जियां उगाई जा रही हैं और बांस से खूबसूरत झोपड़े बनाए गए हैं, जिन्हें ठंडा रखने के लिए एयर कंडिशनर या कूलर की जरूरत नहीं है।

आर. श्रीनिवास ने कहा, “हमारे पास टोटल 30 एकड़ हैं, लेकिन कैंपस सिर्फ 15 एकड़ का है। इसमें हम ज्यादातर जंगल बनाने की कोशिश करते हैं और जैव-विविधता जो अपने आप आ रही है, हमारे यहां 40 से ज्यादा प्रकार के जंगल के पेड़ हैं, जो खुद उग रहे हैं। यहां 60 से ज्यादा किस्म की चिड़ियां दिखती हैं। 27,000 लीटर्स का बायो फर्टिलाइजर प्लांट है। इसके अंदर हम सिर्फ यूरिन और डंग- ये दोनों प्राइमरिली यूज करते हैं, जीवामृत बनाने के लिए। उसमें मोलैसेस भी एड होती है। थोड़ा बेसन भी एड होती है। इनके अलावा हमारा ये सोच है कि यूरिन को भी 100 परसेंट यूटिलाइज करने का। हमारा जो भी यूरिन आता है, वो या तो पानी के साथ डाइल्यूट होके प्लांट्स में जाता है और नहीं तो ये जीवामृत बनाने के लिए आता है। इधर से पूरा सप्लाई होता है हर खेत में, पाइप के जरिये।”

किसान ने कहा, “ऑर्गेनिक खेती करने का मौका मिला। हमें मिट्टी से बंबू के घर बनाने की टेकनिक मिली। हम जल संरक्षण और ऐसे कई विभिन्न प्रकार के हैं, जो सर के साथ रहके सीखने का मौका मिला है। इस नेचर के लिए कुछ बदलाव करने के लिए, नेचर को कुछ बदलने के लिए, नेचर जो बिगड़ रहा है, लोग अपने तौर-तरीके बिगाड़ रहे हैं, उसको सुधारने के लिए काम कर रहे थे। ये सब देखा मैं, तो सर के साथ जुड़ा और सर के साथ काम कर रहा हूं।”

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप-निदेशक प्रकाश कुमार वर्मा ने कहा, “ना केवल जंगल को, वन को बढ़ावा दे रहे हैं, नई तकनीक से खेती करके गांव वालों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं कि कैसे आप बंजर जमीन में भी कम पानी की फसल या कम खाद से, नैचुरल खाद से, प्राकृतिक खाद से कैसे फसल को उगा सकते हैं। वो कोई भी रसायन का उपयोग नहीं कर रहे हैं। गांव वालों को बता रहे हैं कि बगैर रसायन का उपयोग किए आप अच्छे से कर सकते हैं।”

 

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