Gujarat: दृष्टिबाधित होने के बावजूद अपने ख्वाबों को कैसे पंख दिए जाते हैं, वडोदरा के रहने वाले दर्पण इनानी इसकी जीती जागती मिसाल हैं। दर्पण जब महज तीन साल के थे तब उनकी आंखों की रोशनी चली गई। बावजूद इसके उन्होंने हार नही मानी और शतरंज के अपने जुनून को हर पल जीया। आज इसकी बदौलत वो कई अंतरराष्ट्रीय खिताब अपने नाम कर चुके हैं।
दर्पण आने वाले वक्त में कई बड़ी प्रतियोगिताओं में शिरकत करने की तैयारी कर रहे हैं। दर्पण अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं। उनका कहना है कि उनके माता पिता ने कभी उन्हें कमजोर पड़ने नहीं दिया। आज उनके आशीर्वाद से ही वो अपनी कामयाबी का सफर जारी रखे हुए हैं।
दर्पण इनानी ने कहा, “मैंने इंडिया के लिए पैरा एशियन गेम्स में जो चाईना में हुए थे 2023 में उसमें दो गोल्ड मेडल जीते थे, एक इंडिविजुअल और एक टीम तो मेरा एक्चुअली चेस से परिचय हुआ था 2008 में मतलब मैंने 2008 से चेस खेल रहा हूं और वो इस वजह से हुआ क्योंकि चेस के अलावा कोई ऐसा गेम नहीं है जो एक दृष्टिबाधित व्यक्ति या जिसे हम विजुअली इंपेयर्ड कहते हैं, वो एक नॉर्मल इंसान के साथ साइटिड या देखने वाले इंसान के खेल सके। तो चेस एक मात्र गेम है जो एक दृष्टिबाधित व्यक्ति खेल सकता है साइटिड पर्सन के साथ और वो भी मतलब बिना किसी रूल्स को चेंज, बिना कोई उसमें फेरबदल किए।”
”चेस को बहुत मतलब मैं पैशनेटली पर्स्यू करना चाहता हूं एंड मेरा ये एक सपना है कि ग्रैंडमास्टर बनूं क्योंकि पूरे इंडिया से या फिर पूरे एशियन कॉन्टिनेंट में से कोई भी एक ब्लाइंड व्यक्ति ग्रैंडमास्टर नहीं बन पाया है। तो मुझे वो पहला ब्लाइंड ग्रैंडमास्टर फ्रॉम एशिया।”