Jammu Kashmir: गुम होती जा रही है रमजान के दौरान दिखने वाली ‘सहरखान’ परंपरा

Jammu Kashmir: रात के अंधेरे में, सुनसान सड़क पर, सन्नाटे को चीरता, ढोल बजाता एक शख्स चल रहा है। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ता है, आवाज़ धीमी होती जाती है, गुम हो जाती है और अगले मोड़ पर फिर से सुनाई देती है।

रमज़ान में दिखने वाली ये है सहरखान की परंपरा, जो कहीं खोती जा रही है, लेकिन बशारत हुसैन पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा को जिंदा रखने की कोशिशों में जुटे हैं। कश्मीर में पीढ़ियों से सहरखान, रोज़ेदारों को सुबह-सुबह सहरी के लिए जगाते रहे हैं। हालांकि अब इस परंपरा के गुम होने का खतरा मंडराने लगा है।

रमज़ान के दौरान रोज़ादारों को जगाने के लिए सहरखान खुद की नींद भूल जाते हैं। वे बस इतना चाहते हैं कि लोगों की सहरी न चूके और वो सूरज निकलने से पहले अपना रोजा खोल लें क्योंकि इसके बाद वो सूरज ढलने के बाद ही कुछ खा सकेंगे। हालांकि रोज नई-नई तकनीकों से लैस हो रही दुनिया में मोबाइल फोन अलार्म जैसी चीजे सहरखान की जगह लेने को तैयार दिखती हैं।

बशारत हुसैन उन चंद सहरखानों में से एक हैं जो अब भी पूरी शिद्दत से ये काम कर रहे हैं। वे पैसे या किसी और चीज के लिए ये काम नहीं कर रहे हैं बल्कि इसे अपने लिए एक पवित्र जिम्मेदारी मानते हैं। उनके लिए ये काम एक परंपरा से कहीं बढ़कर है।

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