Women’s Day: जम्मू कश्मीर के श्रीनगर की रहने वाली 28 साल की नादिया निगहत महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई है। दरअसल नादिया केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच हैं। और इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने कई रुढ़ियों को तोड़ा है और पुरुषों के वर्चस्व वाली सोच को बदलकर अपने लिए ये मुकाम हासिल किया है।
सफलता के इस मुकाम पर पहुंचने के बाद नादिया अपने बचपन को याद करते हुए बताती हैं कि उन्होंने कितनी कठिनाइयों से लड़ते हुए अपने जूनून को आगे बढ़ाया था और तब वे लड़कों के एक ग्रुप में शामिल हुई थीं। फुटबॉल क्लब में शामिल होने के करीब एक दशक के बाद नादिया ने लड़कियों को ट्रेनिंग देने की ठानी और फुटबॉल कोच बन गई। उनका लक्ष्य जम्मू कश्मीर में महिलाओं की टीम बनाना है।
नादिया ने उन लड़कियों को बड़े सपने दिखाए हैं और उनके लिए दरवाजे खोले हैं। जो खिलाड़ी बनने की सोचती तो थीं लेकिन ऐसा कर नहीं पाती थीं। नादिया ने कुछ लड़कियों से इस मुहिम की शुरुआत की थी और अब नादिया 300 से ज़्यादा लड़कियों को प्रशिक्षित करती हैं।
हालांकि, नादिया का सर्टिफाइड कोच बनने का सफर आसान नहीं रहा। उनका कहना है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें अपने परिवार की नाराजगी और सामाजिक दबाव को भी सहना पड़ा था। नादिया निगहत का कहना हैं कि अब उन्हें लड़कियों को ट्रेनिंग देते करीब दस साल हो गए हैं और अब उन्होंने समाज की धारणा में बदलाव देखा है।
आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले नादिया उन लड़कियों को संदेश दे रही हैं जो अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं। वो लड़कियों को आगे बढ़ने और चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, चाहे उन्हें कितनी भी बाधाओं का सामना क्यों न करना पड़े। जम्मू कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच नादिया उन महिलाओं के लिए बड़ी मिसाल हैं, जो अपने इरादों पर दृढ़ संकल्पित हों और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हर बाधाओं को पार कर अपने लक्ष्य को हासिल करती हैं और दूसरी महिलाओं के लिए भी रास्ते खोलती हैं।
नादिया निगहत ने बताया, “जब मैं 19 साल की थी तो मैं 19 साल की एज में जम्मू कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच बनी थी। जब मेरी उम्र खेलने की थी। लेकिन तब मुझे कोच के तौर पर फुटबॉल में इसलिए आना पड़ा क्योंकि मेरा भी सपना था कि मैं भी इंडिया को एक खिलाड़ी के तौर पर रिप्रेजेंट करूं, लेकिन लड़कियां नहीं आती थीं। लड़कियां फुटबॉल में नहीं आ रही थीं। तो मुझे ही कोच बनकर लड़कियों को लाना पड़ा, लड़कियों के लिए काम करना पड़ा। और मैं अलग अलग जिलों में जाकर गुरेज जैसा बॉर्डर है या कुुपवाड़ा जैसा बॉर्डर एरिया में जाकर भी मैंने कोचिंग कैंप कराए हैं। वहां पर भी मैंने फुटबॉल की जानकारी दी है, ताकि फुटबॉल में लड़कियां आएं। आज हमारे पास 300 से ज्यादा लड़कियां हैं जो फुटबॉल खेलती हैं।”
“जब मैंने खेलना शुरु किया था तो सबसे पहली बात तो ये है कि हमें मोटिवेशन आती है वो हमें घर से आती है। तो वही चीजें जो हर घर में हैं मेरा भी कोई मोटिवेशन नहीं था। मेरा भी कोई सपोर्ट नहीं था। आए दिन घर पर मार पड़ती थी। मम्मी मारती थी। मतलब बहुत अलग अलग तरीके के इलेक्ट्रिक शॉक्स, बेल्ट से मारना, बाहर ना जाने देना, रूम में बंद करना- ऐसी बहुत सारी चीजें हुई हैं। पर फिर जब मैं आगे आई और जब मैंने नेशनल खेला और पापा ने मुझे सपोर्ट किया तब जाकर मम्मी ने सपोर्ट किया। हालांकि मम्मी भी सपोर्ट करती थी, लेकिन लोग हमारी सोसायटी में एक बीमारी है कि लोग क्या कहेंगे। मेरे हिसाब से मुझे लगता है कि वो कम हो गया है लेकिन अब भी नहीं गया है। अब भी किसी हद तक वो चल रहा है।”
“जितना हमें पहले दिक्कतें आती थीं उतनी अब हमें दिक्कतें नहीं है, क्योंकि अभी लड़कियां आ रही हैं। स्पोर्ट्स की ओर, लेकिन कुछ लड़कियां हैं वो इंडिविजुअल स्पोर्ट्स पसंद करती हैं। लेकिन कुछ लड़कियां तो फुटबॉल में आना चाहती हैं और फुटबॉल को समझना चाहती हैं।क्योंकि फुटबॉल एक टीम गेम है। टीम में अगर एक प्लेयर लूज पड़ा तो पूरी टीम पर असर पड़ेगा तो हम पहले उस चीज की जानकारी देते हैं। वो लड़कियां जिनको इंट्रेस्ट आ रहा है, जो कि स्कूल नेशनल खेलती हैं या एसोसिएशन नेशनल होते हैं और बाहर भी जाती हैं खेलने के लिए, जैसे हमारी अप्रोच होती है तो हम बाहर भी भेजते हैं खेलने के लिए, तो अब हमारी एक टीम भी है सीनियर गर्ल्स का डाउन टाउन हीरोज करकेे।”
“आज महिला दिवस के लिए मैं लड़कियों के लिए जो मैसेज दूंगी कि अगर आप कुछ भी करना चाहते हैं, जब आप अपने मन से कहते हैं कि ये मेरे से नहीं होगा और जब आप एक स्टेप पीछे जाते हैं।आप उस एक स्टेप पीछे ना जाकर के एक स्टेप आगे करें और आप एक बार खुद को तो मौका दीजिए, क्या पता आप कामयाब हो जाएंगे। मेरी हमेशा यही मोटिवेशन रहती है कि आप एक बार खुद को मौका दीजिए कि आप एक बार फेल होते हैं या एक दो बार फेल होते हैं। तीन बार फेल होते हैं लेकिन आप दोबारा खुद को चांस देते हैं तब जाकर आप ग्रो कर पाएंगे।”