IVR Calls: आईवीआर कॉल से बढ़ रहे हैं फर्जीवाड़े के मामले, कैसे कर सकते हैं बचाव

IVR Calls: फर्जी इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पांस यानी आईवीआर कॉल के जरिए लोगों को फर्जीवाड़े का शिकार बनाने के मामले दिनों-दिन बढ़ते ही जा रहे हैं, स्वचलित कॉल से घोटालेबाज लोगों को धोखे में रखकर संवेदनशील बैंकिंग डिटेल्स जान लेते हैं जिससे काफी आर्थिक नुकसान होता है।

वह बैंकों, सरकारी एजेंसियों या किसी और कंपनी का एजेंट बनकर कॉल करते हैं, और उनकी बातचीत से वो कॉल असली जैसी लगती है। घोटालों के पुराने तरीकों के अलावा आईवीआर सिस्टम से फर्जीवाड़े के मामले काफी बढ़ गए हैं। इन फर्जी आईवीआर घोटालों को कैसे अंजाम दिया जाता है और लोग इनसे खुद को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं.

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट अनुराग सिंह ने कहा कि हम इसको थोड़ा स्पेशलाइज्ड भाषा में समझें तो इसे हम फिशिंग में विशिंग कहते हैं यानी वॉयस के थ्रू हम कहीं न हीं फिशिंग कर पा रहे हैं। सो आईवीआर कॉल कहीं न कहीं इनिशिएशन होता है जहां से ये साइबर फ्रॉडस्टर या ये साइबर क्रिमनल्स हैं वो एंड यूजर्स को अपने झांसे में फंसाते हैं।

तो वो उन्हें विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि वो किसी बैंक से बात कर रहे हैं या किसी क्रेडिट कार्ड कंपनी की तरफ से बात कर रहे हैं या किसी यूटिलिटी प्रोवाइडर जैसे बिजली विभाग या यहां से फोन कर रहे हैं। जैसे ही एक यूजर उन पर भरोसा कर लेता है कि यस वो किसी बैंक से ही हैं, उसके बाद वो यूजर उनकी हर इंस्ट्रक्शन फॉलो करने लगता है। जैसे ही ये यूजर उनकी ये सारी इंस्ट्रक्शन फॉलो करता है, तो फॉलो करते-करते वो उस इंसान के अंदर अगर देखें तो टेक्टिक्स फॉलो करते हैं जैसे कहते हैं स्केयर्स फैक्टर।”

दुनिया भर के देशों की सरकारें और साइबर सुरक्षा एजेंसियां ​​कानूनी उपायों और तकनीक के माध्यम से आईवीआर घोटालों से निपट रही हैं। भारत में धोखाधड़ी वाले मामले आईवीआर कॉल सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम- 2000 और बैंकिंग धोखाधड़ी नियमों के तहत आते हैं।

बैंकों के अधिकारी लगातार ग्राहकों को कॉल पर संवेदनशील जानकारी साझा न करने की चेतावनी देते हैं। बावजूद इसके साइबर अपराधी फर्जीवाड़ा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इस खतरे से निपटने के लिए बैंक और दूरसंचार कंपनियां एआई-संचालित धोखाधड़ी का पता लगाने और कॉल वेरिफिकेशन सिस्टम लागू कर रही हैं।

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट शुभम सिंह ने कहा कि “ट्राई और जो टेली कम्युनिकेशन एजेंसीज हैं इंडिया की वो अपनी तरफ से काफी कोशिश कर रही हैं। अपनी सोशल मीडिया से अवेयर करने की, अपने कॉल के जरिए और हर एक तरीके से वो अवेयर करने की जरूरत कर रही है और इनका जो सिस्टम होता है जैसे कि जब कोई, ये एक कलेक्टिवली डेटा बेस बना रही हैं ताकि इनके पास जो रिपोर्ट्स आएं, जो विक्टिम्स के नंबर्स आएं, वो उनको अपने डेटा बेस में अपडेट करके ब्लॉक कर दें कि वो नंबर बंद हो जाए परमानेंटली और उस नंबर से कोई और स्कैम न हो। इस तरह से इंडियन गवर्नमेंट इसको टैकल करने की कोशिश कर रही है।”

बैंक के अधिकारी इन घोटालों से निपटने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि फर्जीवाड़े से बचने के लिए सबसे ज्यादा ग्राहक को जागरूक होना रहता है।

फर्जीवाड़े से बचने के लिए कभी भी कॉल पर ओटीपी, सीवीवी या पिन साझा न करें क्योंकि बैंक और वित्तीय संस्थान कभी भी आईवीआर के जरिए डिटेल्स जानने की कोशिश नहीं करते हैं। यदि आपको कोई संदिग्ध आईवीआर कॉल आती है, तो हमेशा अपने बैंक के कस्टमर केयर नंबर पर फोन कर पुष्टि कर लें।

साइबर अपराध पोर्टलों पर घोटालों की रिपोर्ट करने से अधिकारियों को धोखेबाजों पर नज़र रखने और ऐसे अपराधों को रोकने में मदद मिलती है, कॉल-ब्लॉकिंग ऐप्स का उपयोग करना और मल्टी-फैक्टर वेरिफिकेशन भी फर्जीवाड़े को रोकने में काफी सहायक होते हैं।

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