Haryana: हरियाणा के नूंह के चाकू अपनी धार के लिए पूरे देश में मशहूर हैं, तेज धार और मजबूती वाले नूंह के कैंची और चाकुओं का इस्तेमाल सब्जियां और कपड़े काटने जैसे घरेलू काम के लिए किया जाता है।
नंहू के कई परिवार कई पीढ़ियों से कैंची-चाकू का काम करते आ रहे हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को करती चली आ रही हैं और समय के साथ साथ जो भी जरूरी है, उतना बदलाव भी कर रही है
चाकू के हैंडल शीशम और चंदन जैसी बेशकीमती लकड़ियों से तैयार किये जाते हैं, जो उन्हें और भी खूबसूरत बना देते हैं, रसोई के चाकुओं के साथ-साथ एक इंच के छोटे चाकू भी तैयार किए जाते हैं। इनके बारे में माना जाता है कि ये नवजात बच्चों को बुरी नजर से बचाते हैं।
बढ़ती लागत के बावजूद नूंह में चाकू अब भी बाजार के मुकाबले 50 रुपये कम कीमत में मिल जाते हैं। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए ये काफी किफायती साबित होते हैं, नूंह के कुशल कारीगर क्वालिटी से समझौता किए बगैर अच्छे चाकू और कैंची बनाते हैं, जिनकी खूब डिमांड रहती है।
चाकू विक्रेताओं का कहना है कि “चाकू सब्जी वाले जेब में रखने वाले बनते हैं। लकड़ी हैंडल में शीशम में डाले जाते हैं। नूंह के मशहूर चाकू हैं और चौथी पीढ़ी हो गई इसको चलते-चलते। अभी और पीढ़िया चलेंगी।
“चाकू के बारे में और पीढ़ी चलेगी। हमारे पापा कर रहे हैं हम भी करेंगे जी। हमारी औलाद भी करेगी। चलती रहेगी ये पीढ़ी तो,जब तक जिंदगी है। यहां तो बहुत दूर-दूर तक फैलेगी। देश विदेश है। कितना बड़ा हरियाणा है अपना इंडिया है सब में अपने चाकू जाते हैं जी। जितने भी यहां है सब चाकू ले जाते हैं।”
“जनाब ये हमारा बहुत पुराना काम है ये। करीब-करीब चौथी-पांचवीं पीढ़ी का काम है ये पुराना काम है ये। हमारे घर से ही मशहूर हुआ है चाकू। इसमें शीशम और चंदन की लकड़ी से चाकू बनता है। सभी घरेलू काम और सब्जी काटने के काम आता है ये। बाहर के जो मेहमान आते हैं वो भी लेकर जाते हैं। जमात आती है दूर दूर से, बहुत दूर-दूर से जमात आती है वो नूंह की सौगात समझ कर बहन बेटी भी आती है। एक बच्चे के गले में चाकू डलता है, बहुत छोटा सा डलता है। शायद मेरे हिसाब से कहीं इंडिया के किसी कोने में नहीं बनता है।”