Bhopal: दिसंबर 1984 की सर्द रात भोपाल के बेहद मनहूस थी, दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाने वाली जहरीली गैस, मिथाइल आइसोसाइनेट, दो और तीन दिसंबर, 1984 की मध्यरात्रि को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई थी।
सरकारी अनुमान के अनुसार जहरीली गैस ने 5,000 से अधिक लोगों की जान ले ली और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए, यह त्रासदी चार दशकों के बाद भी जीवित बचे लोगों को शारीरिक और भावनात्मक रूप से परेशान कर रही है। गैस ने तेजी से शहर को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे रास्ते में आने वाले सभी लोगों का दम घुट गया। घबराए हुए लोग इस बात से अनजान थे कि उनके साथ क्या हुआ था, वे हांफते हुए अपने घरों से बाहर निकल आए और पुराने भोपाल की गलियों में मदद की चीखें गूंजने लगीं।
यूनियन कार्बाइड के पूर्व कर्मचारी को वो भयावह रात याद है, जब उनकी शिफ्ट के दौरान रिसाव हुआ था, उन्होंने कहा कि रिसाव को रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते, वो लोग अपनी जान बचाने के लिए लड़ते हुए भागने लगे, भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक विभाग के डॉक्टर ने उस समय के मंजर को याद किया।
त्रासदी में जीवित बचे लोगों में से एक रशीदा बी, जो बाद में जीवित बचे लोगों की सबसे प्रमुख आवाज़ों में से एक बन गईं, आपदा की सिहरन पैदा करने वाली तस्वीर पेश करती हैं। वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि “जिस रात गैस रिसाव हुआ, उसके बारे में किसी को दूर-दूर तक कोई आशंका नहीं थी या कल्पना नहीं थी कि ऐसा इतना बड़ा की पूरे संसार को हिला दे, ऐसा कोई हादसा हो सकता है। सर्दी के दिन थे। सभी लोग अपने घरों मे सोए थे और उस रात ठंड काफी थी।”
नियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कीटनाशक संयंत्र के पूर्व कर्मचारी अब्दुल सईद खान ने बताया कि “रात में लगभग एक बजकर 10 मिनट पर सायरन बजने लगा। तो हम लोग बाहर आए तो देखा कि किसी ने बताया कि एमआईसी गैस लीकेज हो रहा है तो जल्दी से प्लांट की ओर जाइये आप लोग। तो मैं रेस्क्यू स्वॉयड में था, जिसमें घायल लोगों को रेस्क्यू करना, उसके लिए हमें ट्रेनिंग दी गई थी तो हमलोग दौड़कर गए तो वहां प्लांट सुपरिंटन्डेंट थे के.वी. शेट्टी तो उन्होंने बताया कि ये एमआईसी गैस का लीकेज है तो आप लोग पानी का छिड़काव शुरू करो।”
“हमारे प्लांट सुपरिंटेन्डेंट थे के.वी. शेट्टी ने कहा कि गैस कंट्रोल नहीं हो रही है तो आप लोग भी सेफ एरिया में चले जाओ। तो मैं और शकील कुरैशी और मिस्टर दूबे थे। गैस इतनी फैल गई थी कि हमें पता नहीं था कि हम किस तरफ भागें। हम लोग पीछे भागे और रेलवे की बाउंड्री थी। उस पर चढ़कर हम लोग नीचे कूद गए।”