New Delhi: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के अनुसार सर्दियों के मौसम में दिल्ली के प्रदूषण में गाड़ियों से निकलने वाला धुआं सबसे बड़ी वजह है – पराली जलाने, सड़क की धूल या पटाखे फोड़ने से भी ज्यादा – स्थानीय स्रोतों से होने वाला 50 प्रतिशत से ज्यादा प्रदूषण शहर के खराब ट्रांसपोर्ट सिस्टम से जुड़ा है।
अनुमान है कि हर दिन 1.1 मिलियन गाड़ियां दिल्ली में आती-जाती हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता और खराब हो जाती है। गाड़ियों की इस भरमार से होने वाला ट्रैफिक, प्रदूषण को बढ़ाता है, खास तौर पर नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), जो दिल्ली में प्रदूषण का 81 प्रतिशत है।
सीएसई कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने बताया कि “आईआईटीएम हमें जो बता रहा है, उसके अनुसार अक्टूबर में गाड़ियों की संख्या आधे से ज़्यादा थी, उसके बाद घरों में लकड़ी जलाना, पेरीफेरल इंडस्ट्री, कंस्ट्रक्शन और दूसरे स्रोत थे। अब ये 50 प्रतिशत हमें परेशान कर रहा है, हमें सब पर चर्चा करने की ज़रूरत है, लेकिन 50% क्यों?”
उन्होंने कहा कि “पिछले साल हमने 6.5 लाख गाड़ियां जोड़ी हैं और महामारी से पहले ये औसतन 6.1 लाख था जो हम हर साल जोड़ रहे थे। और इसमें से ज़्यादातर दो-पहिया और कार, प्राइवेट गाड़ियां हैं, लेकिन जो नाटकीय है वो ये है कि अब कोविड के बाद हम देख रहे हैं कि कारों और दो-पहिया गाड़ियों की वृद्धि दर बराबर हो गई है यानी दोनों के लिए 15% की वृद्धि दर है।”
सीएसई के महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि “आईआईटीएम का कहना है कि सर्दियों में होने वाले प्रदूषण के लिए दिल्ली में स्थानीय स्रोतों का 30 प्रतिशत योगदान है। एनसीआर और दूसरे जिलों में 30-30 फीसदी योगदान है। दिल्ली का 50 प्रतिशत प्रदूषण गाड़ियों से होता है। इसलिए हम कह रहे हैं कि आपको (सरकार को) कार्ययोजना पर काम करना होगा। आपको तीनों वजहों को कंट्रोल करना होगा।”
“पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी को टालने के लिए, आपको पूरे साल प्रदूषण के खिलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए थी ताकि ग्रैप अस्थायी उपाय हो और आपको इसे लागू करने की ज़रूरत न पड़े।”