Rajasthan: राजस्थान में जयपुर की दिवाली में सांस्कृतिक विरासत और शिल्प कौशल का अद्भुत मेल होता है, यहां मुस्लिम परिवार 300 साल से ज्यादा समय से पटाखे बना रहे हैं। मशहूर शोरगर समुदाय ने राजा-महाराजाओं के समय से आतिशबाजी उद्योग को विकसित करने में अहम योगदान दिया है। “शोरगर” शब्द पटाखों में इस्तेमाल होने वाले सोडियम से बना है, शोरगर समुदाय की जड़ें अफगानिस्तान से जुड़ी हैं।
माना जाता है कि राजा मानसिंह ने इन कारीगरों को पटाखे बनाने के लिए आमेर में बसाया था। आज भी वे दिवाली समेत तमाम अहम मौकों के लिए पटाखे बनाते हैं। हर साल दिवाली से पहले दूर-दूर से लोग पटाखे खरीदने के लिए जयपुर आते हैं, बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए अब शोरगर समुदाय पर्यावरण के अनुकूल पटाखे बना रहा है।
बेहतरीन आतिशबाजी बनाने के हुनर की बदौलत शोरगर समुदाय की शोहरत देश-विदेश में फैल गई है। दुकानदारों का कहना है कि “राजपरिवार में अभी भी पटाखे जाते हैं। पहले भी जाते थे। दरअसल में पटाखों का ईजाद जयपुर में राजपरिवारों से ही हुआ है। जब सवाई माधो सिंह जी की सिल्वर जुबली जयंती थी, उसी समय हमारे जो बुजुर्ग थे, वो तोपखाने पर काम किया करते थे, गोला-बारूद बनाने का। और उसी समय उन गोला-बारूद के अंदर रंगीनियां डाल करके उन्होंने रोशनियां कीं। तब से इस आतिशबाजी का आविष्कार यहीं से हुआ।
इसके साथ ही पटाखा कारीगरों का कहना है कि “अफगानिस्तान से हम लोग चौथी पीढ़ी हैं, जो पटाखों का काम कर रहे हैं। बेसिकली हमारा काम जो है, मेनली आतिशबाजी का, राजा-महाराजाओं के लिए हुआ करता था। अब चीजें बदल गई हैं। टेक्नोलॉजी का नया यूज हो गया है। अब शादी-ब्याहों में भी आतिशबाजी का उपयोग होता है। अब दिवाली के पटाखे भी जलाए जाते हैं। हम इन सब चीजों को भी बनाते हैं।