Ayodhya: अयोध्या के ज्योतिषियों से जानिए धनतेरस और दिवाली पर पूजा के लिए शुभ मुहूर्त

Ayodhya: दिवाली का त्योहार 14 साल वनवास के बाद भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने का प्रतीक है, माना जाता है कि उस समय लोगों ने दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था। दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस मनाया जाता है, ये रोशनी के त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। इसे स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरि के सम्मान में मनाया जाता है, धनतेरस पर कीमती सोने-चांदी या धातु के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।

ज्योतिषियों के मुताबिक धनतेरस की पूजा करने का खास मुहूर्त है और इस बार धनतेरस 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा, ज्योतिषियों के मुताबिक दिवाली के दिन भी देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने का समय तय है और दीपावली महापर्व इस बार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

ज्योतिषी पंडित कल्कि राम ने बताया कि “कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को ही भगवान धन्वंतरि का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है और ये पूजा प्रदोष काल में होती है। अब की बार 30 अक्टूबर मध्यान्ह बेला में एक बजकर 12 मिनट तक त्रयोदशी है, इसलिए धनतेरस 29 अक्टूबर शुभ दिन मनाई जाएगी। इसकी पूजा का मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार सायंकाल छह बजकर 19 मिनट से लेकर आठ बजकर 15 मिनट तक है।”

पंडित कौशल्यानंद वर्धन, ज्योतिषी “10 बजकर 51 मिनट के बाद से त्रयोदशी लग जा रहा है तो प्रदोष व्यापिनी ही धनतेरस मनाई जाती है और इनका पूजन आदि किया जाता है। सोरसुपचार पूजन करें। अर्ध पाद्य आचमन स्नान आदि कराकर के भगवान धन्वंतरि का ध्यान पुष्प आदि चढ़ाकर फल मीठा आदि भोग बनाकर और विशेष कर प्रदोष व्यापिनी में लक्ष्मी की आराधना करें तो आज के दिन धन्वंतरी की कृपा विशेष होती
है।”

इसके साथ ही कहा कि “दीपावली महापर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा और इसके पूजा का जो मुहूर्त है अमावस्या तिथी के आरंभ होने के ठीक सात मिनट के बाद से ही तीन बजकर 40 मिनट से ही पूजा का आरंभ शुभ मुहूर्त है। जो लोग अपने प्रतिष्ठा की पूजा करना चाहते हैं उन्हें चाहिए कि तीन बजकर 40 मिनट पर अपने नवीन प्रतिष्ठान की पूजा कर सकते हैं और लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व सायं पांच बजकर 15 मिनट से लेकर आठ बजकर 55 मिनट तक विशेष मुहूर्त है।”

“इस वर्ष दीपावली कार्तिक कृष्ण पक्ष को चतुर्दशी तीन बजकर 11 मिनट तक 31 तारीख को है और उसके बाद अमावस्या लग रही है तो प्रदोष व्यापिनी और रात्रि व्यापिनी अमावस्या तिथी में ही लक्ष्मी आदि पूजन किया जाता है। गोधूली बेला में इसका पूजन होना चाहिए, क्योंकि इसमें गोधूलि में ही राक्षसों की गति जो है वो तेज होती है और जब हम अपने दरवाजे पर दीपमालिका का उत्सव करते हैं राक्षस और इस प्रकार के जो असामाजिक तत्व होते हैं वो दूर हो जाते हैं।”

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