IIT Delhi: आईआईटी दिल्ली के रिसर्चरों ने तेज गति से ऑटोमेटिड लैंडस्लाइड मैपिंग के लिए टूल किया लॉन्च

IIT Delhi: आईआईटी दिल्ली के रिसर्चरों ने दावा किया है कि उन्होंने लैंडस्लाइड की रैपिड एंड ऑटोमेटिड मैपिंग के लिए एक एडवांस टूल एमएल-कैस्केड को डेवलेप किया है। रिसर्चरों के मुताबिक ये टूल मशीन लर्निंग और क्लाउड कंप्यूटिंग पर आधारित है, लैंडस्लाइड की सीमा को मैप करने के लिए सैटेलाइट डेटा का उपयोग करता है।

रिसर्चरों के मुताबिक, ये इनोवेशन ट्रैडिशनल डिजास्टर मैनेजमेंट प्रोसेज को व्यवस्थित करता है, जो फील्ड सर्वे और ड्रोन पर निर्भर है जिसकी वजह के इसके नतीजे सटीक होते हैं। ये टूल सैटेलाइट डेटा को यूटिलाइज करने के लिए मशीन लर्निंग और क्लाउड कंप्यूटिंग का उपयोग करता है, जिससे लैंडस्लाइड का सटीक आकलन होता है।

रिसर्चरों का दावा है कि एमएल-कैस्केड लैंडस्लाइड के कॉम्पलेक्स क्लस्टर्स को केवल पांच मिनट में मैप कर सकता है, जबकि नॉर्मल लैंडस्लाइड का एनालिसिस केवल दो मिनट में किया जा सकता है, जिससे इवैल्युएशन प्रोसेज काफी तेज हो जाता है। रिसर्चरों ने दिखाया कि कैसे ये टूल केवल दो इनपुट घटना की तारीख और जगह का उपयोग करके लैंडस्लाइड की सीमा को दिखाता है।

लैंडस्लाइड के अलावा, डेवलपरों ने बताया कि एमएल-कैस्केड को लैंडस्लाइड के अलावा अलग अलग प्राकृतिक आपदाओं, जैसे अचानक बाढ़ और भूकंप की मैपिंग के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है, जिससे आपदा प्रबंधन में इसके प्रयोग का दायरा बढ़ जाएगा। रिसर्च टीम एमएल-कैस्केड को प्रयोग में लाने के लिए आपदा प्रबंधन अधिकारियों के साथ मिलकर सक्रिय रूप से काम कर रही है। अब तक इस टूल का उपयोग देशभर में 20,000 से ज्यादा लैंडस्लाइड को मैप करने के लिए किया गया है, इन आकलनों पर डेटा जल्द ही जारी होने की उम्मीद है।

सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मानवेंद्र सहारिया ने बताया कि “जब भी लैंडस्लाइड होता है, एक चीज जो हम जानना चाहेंगे वो ये है कि इम्पेक्ट एरिया क्या है, इससे कितना नुकसान हुआ है। अब पारंपरिक रूप से लैंडस्लाइड को डिजिटाइजेशन के मैन्युअल तरीकों के माध्यम से मैप किया जाएगा। इसलिए आप एक सैटेलाइट तस्वीर लेंगे, फिर आप मैन्युअल रूप से डिजिटाइज़ करेंगे कि कितने इलाके में ये फैला है, तो जाहिर है कि इसमें समय लगता है और ये गलत भी है।इसलिए हमने इस सोफिस्टिकेटिड मशीन लर्निंग और क्लाउड कंप्यूटिंग आधारित टूल को डेवलेप किया है।

सिविल इंजीनियरिंग विभाग प्रोफेसर मानवेंद्र सहारिया ने कहा कि “यह पूरी तरह से खुला स्रोत है और ये लैंडस्लाइड से पहले और लैंडस्लाइड के बाद, वनस्पति, क्षेत्र में ऊंचाई और ढलान क्या है और लैंडस्लाइड की वजह से बनी ताजा मिट्टी क्या है ये सभी जानकारी का उपयोग करता है। इन सभी सूचनाओं का उपयोग इसमें किया जाता है मशीन सीखने के माहौल में, हमने पांच मिनट में लैंडस्लाइड के कॉम्पलैक्स क्लस्टर्स और दो मिनट में लैंडस्लाइड के सिंपल क्लस्टर को मैप करने के लिए इस ओपन-सोर्स टूल को डेवलेप किया, यूजर को घटित हुए लैंडस्लाइड के कॉर्डिनेट और एप्रोक्सिमेट के अलावा कोई जानकारी देने की जरूरत नहीं है।”

रिसर्चर निर्देश कुमार शर्मा ने बताया कि “एमएल-कैस्केड चलाने के लिए आपको बस लैंडस्लाइड का स्थान और डेटा जानना होगा। फिर एमएल-कैस्केड सेंटिनल-टू इमेजरी भेजेगा। फिर आप कुछ और लैंडस्लाइड नमूने प्रदान कर सकते हैं ताकि आप भूस्खलन की सीमा विकसित कर सकें। यहां, मैंने कोडागु का भूस्खलन मानचित्र लोड किया है जो 2018 में हुआ था। एक बार जब हम रुचि का क्षेत्र प्रदान कर देंगे तो हम उस पर ज़ूम करेंगे जो तस्वीर को उस क्षेत्र में क्लिप करेगा, फिर हम कुछ लैंडस्लाइड और गैर-भूस्खलन नमूने प्रदान करेंगे जिनका उपयोग किया जाएगा, क्लॉड कंप्यूटर का उपयोग करके मशीन लर्निंग को बैकग्राउंड में चलाने के लिए।”

 

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