Ratan Tata: रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे, उन्होंने छह महाद्वीपों के 100 से ज्यादा देशों में चलने वाली 30 से ज्यादा कंपनियों को चलाया, फिर भी सादगी भरा जीवन जीते थे। रतन नवल टाटा का देर रात 86 साल की उम्र में निधन हो गया, उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली।
पढाई पूरी करने के बाद रतन टाटा पारिवारिक फर्म में शामिल हो गए, उन्होंने शुरुआत में शॉप फ्लोर पर काम किया। साल 1971 में नेशनल रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी के प्रभारी निदेशक बनने से पहले उन्होंने टाटा ग्रुप के कई बिजनेस में अनुभव हासिल किया। एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने और 1991 में उन्होंने अपने चाचा जेआरडी से टाटा ग्रुप के चेयरमैन का पद संभाला और लगभग आधी सदी से भी ज्यादा समय तक इस पद पर कायम रहे।
यह वो साल था जब भारत ने अपनी इकॉनमी को ओपन किया और टाटा ने जल्द ही ग्रुप को बदल दिया, जो 1868 में एक छोटी कपड़ा और बिजनेस फर्म के रूप में शुरू हुई थी। देखते ही देखते टाटा ग्रुप नमक से स्टील, कारों से सॉफ्टवेयर, पावर प्लांट और एयरलाइंस तक ग्लोबल पावरहाउस में बदल गया।
वो दो दशकों से ज्यादा समय तक ग्रुप की मेन होल्डिंग कंपनी टाटा संस के अध्यक्ष रहे। उस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करने की कोशिश की। टाटा ग्रुप ने साल 2000 में 431.3 मिलियन अमरीकी डॉलर में लंदन के टेटली टी का अधिग्रहण किया, दक्षिण कोरिया के देवू की ट्रक-मैन्युफैक्चरिंग को खरीदा। साल 2004 में टाटा मोटर्स ने 102 मिलियन अमेरिकी डॉलर में एंग्लो-डच स्टील मैन्युफैक्चरर कोरस ग्रुप का अधिग्रहण करने के लिए 11.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर चुकाया और फोर्ड मोटर कंपनी से ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को खरीदने के लिए 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए।
भारत के सबसे सफल बिजनेस टायकून में से एक होने के साथ-साथ वे अपने परोपकारी कार्यों के लिए भी जाने जाते थे। 1970 के दशक में उन्होंने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य संस्थानों में से एक की नींव रखते हुए, आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज प्रोजेक्ट की शुरुआत की।1991 में टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति के बाद रतन टाटा ने लोगों की भलाई के लिए तेजी से पहल की। उन्होंने अपने परदादा जमशेदजी की तरफ से बनाए गए टाटा ट्रस्ट को अहम सामाजिक जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ाया और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज जैसे एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की स्थापना की और पूरे भारत में शैक्षिक पहलों को फाइनेंस किया।
टाटा ने अक्टूबर 2016 से कुछ समय के लिए अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और जनवरी 2017 में रिटायर हुए तो नटराजन चंद्रशेखरन को टाटा समूह का चेयरमैन बनाया। वे तब से टाटा संस के एमिरेट्स चेयरमैन हैं। इस दौरान उन्होंने 21वीं सदी के युवा उद्यमियों की मदद करते हुए नए युग के टेक्नोलॉजी वाले स्टार्ट-अप में इन्वेस्ट किया। अपनी व्यक्तिगत क्षमता से और कुछ अपनी निवेश कंपनी आरएनटी कैपिटल एडवाइजर्स के जरिए टाटा ने ओला इलेक्ट्रिक, पेटीएम, स्नैपडील, लेंसकार्ट और ज़िवामे समेत 30 से ज्यादा स्टार्ट-अप में इन्वेस्ट किया।