Haryana: हरियाणा का नूंह देश के सबसे पिछड़े इलाकों में गिना जाता है, मुस्लिम बहुल नूंह की राबिया किदवई ने पारंपरिक मान्यताओं को पीछे छोड़ दिया है। वे उस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने वाली पहली महिला हैं, जहां महिलाओं को पर्दे के बिना शायद ही कभी देखा जाता है। महिलाओं के लिए राजनैतिक नुमाइंदगी तो दूर, चुनाव प्रचार करना भी दूर की कौड़ी रही है।
राज्य के पूर्व राज्यपाल अखलाक उर रहमान किदवई की पोती राबिया किदवई को आम आदमी पार्टी ने चुनाव मैदान में उतारा है, उनके खिलाफ मौजूदा कांग्रेस विधायक आफताब अहमद हैं। इंडियन नेशनल लोक दल ने ताहिर हुसैन और बीजेपी ने संजय सिंह को टिकट दिया है, राबिया गुड़गांव की व्यवसायी हैं। उनके विरोधी उन्हें बाहरी करार दे रहे हैं। राबिया भी मानती हैं कि वे नूंह से नहीं हैं, फिर भी इसे अपनी ताकत मानती हैं।
जिस सीट पर महिलाएं राजनैतिक दलों के दफ्तरों में भी नहीं जातीं, वहां राबिया का स्वागत किया जा रहा है। वे कहती हैं कि उनके घर-घर अभियान से महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच भी बदल रही है। उनका कहना है कि पिछले साल यहां हुए सांप्रदायिक झड़पों के लिए बाहरी लोग जिम्मेदार थे।
हरियाणा 1966 में पंजाब से अलग हुआ था, राज्य में लिंग अनुपात हमेशा सुर्खियों में रहा है। अब तक यहां विधानसभा में सिर्फ 87 महिलाओं ने नुमाइंदगी की है। राज्य में कभी कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं रही है, 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा के लिए पांच अक्टूबर को चुनाव होंगे। वोटों की गिनती आठ अक्टूबर को होगी।
एएपी उम्मीदवार राबिया किदवई ने कहा कि “मेरे दादा डॉ. ए.आर. किदवई 2004 से 2009 तक हरियाणा के राज्यपाल थे। उन्होंने मेवात, खासकर नूंह में बहुत काम किया है। वो हरियाणा के वक्फ बोर्ड के साथ मिलकर इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, गर्ल्स कॉलेज और हॉस्टल के फाउंडर थे। उन्होंने यहां नहर को भी मंजूरी दी, कुछ पार्क भी बनवाए और यहां काफी विकास भी किया। उनकी हमेशा से ये इच्छा थी कि परिवार से कोई यहां आकर चुनाव लड़े और हमने इस इलाके के लिए जो काम किया है, उसे आगे बढ़ाएं।”
इसके साथ ही कहा कि “मैं गुड़गांव से हूं, इसलिए निश्चित तौर पर मैं नूंह की निवासी नहीं हूं, हालांकि पिछले दो महीने से मैं यहीं रह रही हूं और आगे भी रहने के लिए मैंने यहीं घर ले लिया है। जिस तरह से मैं इसे देखती हूं वो ये है कि बाहरी नजरिया इस इलाके के लिए बड़ा योगदान है। मैं इस इलाके के लोगों का उस तरीके से प्रतिनिधित्व कर सकती हूं, जिसकी जरूरत है। यहां की आवाज को दिल्ली या शायद विदेशों तक भी ले जाने की जरूरत है। एक ऐसे तरीके से जो समावेशी हो, ज्यादा एजुकेटेड हो और लोगों के लिए इसे अपनाना आसान हो।