Srinagar: विधानसभा चुनाव के बीच बाहर आया कश्मीरी पंडितों का दर्द

Srinagar: जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि उनके समुदाय की घाटी में वापसी और पुनर्वास हो, वह 1990 के दशक में आतंकवाद की वजह से घाटी से भागने को मजबूर हो गए थे, जिन लोगों ने अपना घर-बार नहीं छोड़ा, वह मानते हैं कि पिछले पांच-छह साल में हालात बेहतर हुए हैं।

श्रीनगर के हब्बाकदल में प्राचीन पुरुश्यार मंदिर के केयरटेकर बबलू भट्ट का कहना है कि बेशक पिछले तीन दशकों में कश्मीर में भारी उथल-पुथल हुई। फिर भी यहां हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों के बीच अमन और भाईचारा कायम है। टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े सुशील कौल कश्मीरी पंडित हैं। वो काम के सिलसिले में अक्सर श्रीनगर से जम्मू आना-जाना करते हैं। वे बताते हैं कि पुरुश्यार मंदिर की मरम्मत हब्बाकदल की पूर्व विधायक शमीमा फिरदौस की कोशिशों से हुई थी।

बबलू भट्ट का कहना है कि अमन के बावजूद कश्मीरी पंडित नाखुश हैं, उनका यह भी कहना है कि कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी आम लोगों पर निर्भर करती है। सरकार सिर्फ माहौल बेहतर बना सकती है। श्रीनगर में भट्ट और दूसरे कश्मीरी पंडितों का कहना है कि उन्हें चुनाव के बाद आने वाली सरकार से उम्मीद है कि वो घाटी में आतंकवाद, संघर्ष और पीड़ा की वजहों को दूर करेगी।

पुरुश्यार मंदिर के केयरटेकर बबलू भट्ट ने कहा कि “90 से पहले किसी के घर में शादी होती थी, चाहे वो पंडित था तो मुसलमानों को अंजाम देते थे, मुसलमानों के घर शादी होती थी तो पंडित लोग उसका अंजाम देते थे, पूरा करते थे। भाई-चारा, मेल-मिलाप वो उस टाइम भी था और इस टाइम भी है।”

इसके साथ ही कहा कि “पुरुश्यार मंदिर पहले ऐसे डेजर्ट था, डेजर्ट मतलब इसमें खंडहरात थे पहले 90 में, जब ये स्टार्ट हो गया थोड़ा सा इधर-उधर, तो फिर ये ब्यूटीफुल मंदिर बनाया हमने। बब्लू जी हमारे टेककेयर हैं, हम लोग भी लुकआफ्टर आपस में करते रहते हैं तो हिंदू और मुस्लिम लोग हमारे पास आते रहते हैं, ऐसी बात नहीं है।बहुत चेंज हो गया माहौल, माइंड चेंज हो गया लोगों का, माइंड।”

उन्होंने कहा कि “अगर हम अपनी बात करेंगे, अपनी कम्युनिटी की बात करेंगे तो 10 साल में फिलहाल जो यहां सेंटर की गवर्नमेंट थी, प्रेसीडेंट रूल था, एलजी की गवर्नमेंट थी, तो हमारे लिए कश्मीरी पंडितों के लिए जो वादे किए थे हमको वापस रिहैबलिटेशन करेंगे, वो करेंगे, मकान बनाएंगे, वो करेंगे, वो कुछ उसका नतीजा जीरो हो गया। अब एक बात है, इस टाइम क्या है, इस टाइम एक डर है, कोई खुलकर नहीं बोल सकता है। जबसे 370 खत्म हो गया है, एक डर है सबों के चाहे वो पंडित हों, कश्मीरी मुसलमान हों, एक डर है कि वो खुलकर नहीं बोल सकता। तो उसका क्या रीजन है, ईश्वर जानता है।”

“हमारी माइग्रेशन उधमपुर में हो गई थी 90 में और 90 से 2018 तक यहां सबों को पता है कि हालात क्या थे। हालात 2018 तक बहुत खराब थे। कभी पत्थरबाजी, कभी कुछ, कभी मार-धाड़, कभी कुछ लेकिन 2018 के बाद यहां नॉर्मल्सी आ गई। सबसे पहले पत्थरबाजी खत्म हो गई, हड़ताल खत्म हो गई, दुकानदारों ने दुकान खोला, कारोबार वालों ने कारोबार शुरू कर दिया नए सिरे से।”

 

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