Ladakh: जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के नेतृत्व में 100 से ज्यादा स्वयंसेवकों का दिल्ली तक पैदल मार्च जारी है। यह पदयात्रा रविवार को शुरू हुई थी, उन्होंने केंद्र से उनके चार सूत्री एजेंडे पर लद्दाख के नेतृत्व के साथ रुकी हुई बातचीत को फिर से शुरू करने की अपील की।
‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ का आयोजन लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) ने किया गया है, जो करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के साथ पिछले चार सालों से राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची के विस्तार, लद्दाख के लिए लोक सेवा आयोग के साथ-साथ जल्द भर्ती प्रक्रिया और लेह-करगिल जिलों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीट के समर्थन में संयुक्त रूप से आंदोलन का नेतृत्व कर रही है।
वांगचुक ने कहा कि “आंदोलन है तो लोग जुड़ेंगे हमारी तो यही उम्मीद है क्योंकि हम तो यहां जो लोगों के द्वारा बनाया गया एपेक्स बॉडी है, जो लद्दाख के लोगों की खासकर लेह के लोगों की ख्वाहिश है। ऐसे ही कारगिल के लोगों की है। तो जो इन संस्थाओं की जो आंदोलन है उस पर थोड़ा और आवाज देने के लिए अपना थोड़ा और फर्ज निभाने के लिए आए हैं। तो मैं बहुत खुश हूं कि लोग जुड़े हैं। मैं हैरान नहीं कहना चाहता उन्हीं का तो आंदोलन है वहीं ना जुड़े तो फिर क्यों ये हो। ये लोगों का आंदोलन है। इसमें हम जुड़ रहे हैं, न कि लोग जुड़ रहे हैं। अपना लोकतांत्रिक हक मांग रहे हैं, कुछ अलग नहीं मांग रहे हैं।”
लद्दाख के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत मार्च में बिना किसी ठोस नतीजे के खत्म हो गई थी, ‘भारत माता की जय’ और ‘हमें छठी अनुसूची चाहिए’ के नारों के बीच एलएबी के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग ने एनडीएस मेमोरियल पार्क से मार्च को हरी झंडी दिखाई, वांगचुक ने उम्मीद जताई कि दो अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर दिल्ली पहुंचने पर सरकार उन्हें अच्छी खबर देगी।
सोनम वांगचुक ने कहा कि “आंदोलन है तो लोग जुड़ेंगे हमारी तो यही उम्मीद है क्योंकि हम तो यहां जो लोगों के द्वारा बनाया गया एपेक्स बॉडी है, जो लद्दाख के लोगों की खासकर लेह के लोगों की ख्वाहिश है। ऐसे ही कारगिल के लोगों की है। तो जो इन संस्थाओं की जो आंदोलन है उस पर थोड़ा और आवाज देने के लिए अपना थोड़ा और फर्ज निभाने के लिए आए हैं। तो मैं बहुत खुश हूं कि लोग जुड़े हैं। मैं हैरान नहीं कहना चाहता उन्हीं का तो आंदोलन है वहीं ना जुड़े तो फिर क्यों ये हो। ये लोगों का आंदोलन है। इसमें हम जुड़ रहे हैं, न कि लोग जुड़ रहे हैं। अपना लोकतांत्रिक हक मांग रहे हैं, कुछ अलग नहीं मांग रहे हैं।”