Goa: गणेशोत्सव से पहले राज्य सरकार ने मिट्टी की मूर्ति बनाने वालों को सब्सिडी का तोहफा दिया

Goa: मिट्टी के बर्तन और मिट्टी की मूर्तियां बनाना कई पीढ़ियों से गोवा का पारंपरिक कुटीर उद्योग रहा है। गणेशोत्सव के नज़दीक आते ही, गोवा सरकार इस काम में जुटे कारीगरों को आर्थिक तौर पर मदद देने के लिए खास स्कीम लेकर आई है। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की अगुवाई में शुरू की गई इस पहल का मकसद मिट्टी से गणपति की मूर्तियां बनाने की पारंपरिक कला को बढ़ावा देना है।

मौजूदा वक्त में कारीगरों को कम से कम एक फीट ऊंची मूर्तियों के लिए, मिट्टी की हर मूर्ति पर 200 रुपये की सब्सिडी मिलती है। ये मदद कारीगरों के लिए मिट्टी की मूर्ति बनाना ज्यादा किफायती बनाती है और इको-फ्रेंडली कोशिशों को भी बढ़ावा देती है। गोवा हस्तशिल्प ग्रामीण और लघु उद्योग विकास निगम की तरफ से चलाई जा रही इस स्कीम ने 2023 में 388 लाभार्थियों को 56 लाख रुपये से ज्यादा की रकम बांटी।

मुख्यमंत्री सावंत ने हाल ही में ऐलान किया था कि राज्य में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणपति की मूर्तियों की एंट्री को रोकने के लिए गोवा पुलिस को राज्य की सीमाओं की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, इस कदम का मकसद मूर्ति बनाने में इस्तेमाल होने वाले पर्यावरण के लिए हानिकारक चीजों पर राज्य के बैन को मजबूत करना है।

कारीगरों के मुताबिक राज्य सरकार की ये सब्सिडी स्कीम उनकी कला को निखारने में मदद करेगी। साथ ही इसे पर्यावरण संरक्षण के लिए की जा रही कोशिशों और गोवा की जैव विविधता को बचाने की पहल भी माना जा रहा है। मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले मरकाइम ने बताया कि “बराबर टाइम पर पैसा मिलता है। एक आइडियल में पहले हमें 100 मिलता था अभी 200 किया है। मेरा 270 मूर्तियां है। जब उन्होंने हमें सब्सिडी देना चाही तो पहले तो पेंट और मिट्टी के लिए ऐसे सोचकर दे दिए थे। टेक्निकल प्रोब्लम की वजह से हम थोड़े आगे-पीछे हो रहे थे लेकिन सभी आर्टिजन का सजेशन लेकर हमने उनको मिट्टी के टाइम पर दे दीजिएगा करके बोलने लगे तो उन्होंने हमें अभी टाइम पर देना शुरु कर दिया है तो उससे हमें बहुत ही मदद मिलती है।”

जीएचआरएसएसआईडीसी प्रबंध निदेशक अजय गौडे का कहना है कि “अब आप जानते हैं कि (गोवा) में प्लास्टर ऑफ पेरिस पर प्रतिबंध है, इसलिए हमें इसे बढ़ावा देने की जरूरत है और हमें अपने कारीगरों को बढ़ावा देने की जरूरत है। यही विचार था, कारीगरों का समर्थन करना और हमारी परंपरा को संरक्षित करना।”

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