Kerala: केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम की रहने वाली धनुजा कुमारी हरित कर्म सेना की मेंबर हैं और लोगों में स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं, धनुजा अपने दो और साथियों के साथ रवि नगर मे घरों के दरवाजे खटखटाकर प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करती हैं।
धनुजा कुमारी की उम्र 48 साल है, उन्होने कठिन हालात में अपना जीवन बिताया है, लेकिन वे अब इस काम को भी मुस्कुराते हुए करती हैं। धनुजा नौवी क्लास में थीं, जब उनके माता-पिता ने उनकी शादी चेंडा आर्टिस्ट से कर दी थी।शादी के बाद उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उन्होंने एक किताब लिखी है- चेंगलचूलायिले एंटे जीविथम- यानि माय लाइफ इन चेंगलचूला। ये किताब कन्नूर यूनिवर्सिटी में बीए के छात्रों और कालीकट यूनिवर्सिटी में एमए के छात्रों के लिए सिलेबस का हिस्सा है। किताब का पांचवां एडिशन आ चुका है, धनुजा टीन की छत वाले छोटे से कमरे में रहती हैं। कमरे में खिड़की तक नहीं है।
धनुजा की किताब झुग्गी बस्ती में रहने के उनके संघर्षो को दिखाती है, इन्हीं संघर्षों ने उन्हें शानदार राइटर बनने में भी मदद की, धनुजा ने 38 साल की उम्र में किताब लिखी थी। अब इसकी कामयाबी और एकेडमिक लेवल पर इसकी मान्यता से उत्साहित होकर वे अब इसका दूसरा पार्ट लिख रही हैं, हालांकि अब कई लोग धनुजा को एक राइटर के रूप में जानते हैं, लेकिन धनुजा का मानना है कि उनकी जाति और परवरिश उन्हें बाकी मलयालम राइटरों के बराबर नहीं आने देगी।
सैनिटेशन वर्कर धनुजा कुमारी ने बताया कि “मैं एक इमेजिनेटिव राइटर नहीं हूं, मैं वही लिखती हूं जो मैं अपने रोजाना के जीवन में अनुभव करती हूं। मेरी मलयालम बहुत साहित्यिक नहीं है। मैं अपने आस-पास जो देखती हूं, जिन रास्तों पर चलती हूं, जिन समस्याओं का हम सामना करते हैं और हमारी खुशियों के बारे में लिखती हूं, जब दो विश्वविद्यालय इसे (मेरी किताब को) अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाते हैं, तो यह मेरे लिए नहीं बल्कि चेंगलचूला के लिए गर्व की बात है। और ये मेरे लिए बड़ी बात है कि बीए और एमए की पढ़ाई करने वाले छात्र इसके बारे में बात कर रहे हैं।”
इसके साथ ही कहा कि “अपने लेखन के जरिए मैं चाहती हूं कि बाहरी दुनिया को पता चले कि हम कैसे रहते हैं। मुझे लगता है कि मैं ऐसा करने में सक्षम हूं। न केवल चेंगलचूला बल्कि हमारी जैसी हर कॉलोनी के दुखों, खुशियों को दुनिया के सामने ले जाएं। हमारे जैसे कई लोग हैं उन कॉलोनियों में भी इंटेलिजेंट स्टूडेंट हो सकते हैं, ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो बेहतर चीजें हासिल करने में सक्षम हों, लेकिन जाति, मानसिक क्षमता और पालन-पोषण के नाम पर उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है बदलने के लिए। शब्दों में ताकत होती है, इसलिए मैं उस ताकत का उपयोग कर रही हूं। अगर 100 लोग मेरी कहानी पढ़ेंगे, तो शायद 10 लोग पहचान लेंगे, और इससे एक बच्चा बच सकता है।”