Poland: पोलैंड यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अहम स्मारकों पर जाकर श्रद्धांजलि दी। इनमें से एक स्मारक, वारसॉ में ‘गुड महाराज स्क्वायर’, नवानगर के महाराजा जाम साहब का है, जबकि दूसरा स्मारक कोल्हापुर के महाराजा का है। इन दोनों ही महाराजाओं ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड के हजारों शरणार्थियों को भारत में पनाह दी थी।
1939 में, जर्मनी, स्लोवाकिया और सोवियत संघ ने पोलैंड पर आक्रमण किया था, इसके बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी, जिसमें पोलैंड के हजारों लोगों की जान चली गई थी। वहीं जो लोग बच गए उन्हें जबरन यूएसएसआर यानी सोवियत संघ भेज दिया। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।
निर्वासन की वजह से यूएसएसआर में रहने को मजबूर पोलैंड के नागरिकों को बाद में भारत ले जाया गया, उसी दौरान गुजरात के नवानगर जिसे अब जामनगर कहा जाता है, वहां के महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह जी रणजीत सिंह जी ने कुछ लोगों को अपने राज्य में रहने की इजाजत दे दी।
नवानगर के महाराजा बच्चों की हालत देखकर बहुत दुखी हुए। इसके अलावा पोलैंड के पियानोवादक और राजनयिक इग्नेसी पैड्रुस्की के साथ उनके अच्छे संबंध थे। इग्नेसी से महाराजा की मुलाकात स्विट्जरलैंड में हुई थी, महाराजा ने 1942 से 1945 के बीच नवानगर के बालाचडी में रिफ्यूजी कैंप बनाने के लिए छह लाख से ज्यादा रुपये जुटाए। इस कैंप में पोलैंड के नागरिकों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए मंच, एक चैपल और एक कम्युनिटी सेंटर भी था, द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने तक बालाचडी के कैंप में एक हजार से ज्यादा बच्चे रहते थे। मुश्किल वक्त में महाराजा की इस मदद से भारत और पोलैंड के बीच ऐसा रिश्ता बना, जो सात दशक बीतने के बाद भी बरकरार है।
कम्युनिटी मेंबर जे.जे. सिंह ने कहा कि “जामनगर के महाराजा ने 1941-1942 के दौरान 5,000 पोलिश बच्चों को शरण दी। जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे, उनको साइबेरिया भेज दिया गया और बाद में ईरान के रास्ते ले जाया गया। उस समय, पोलिश सरकार ब्रिटेन में थी, और चूँकि भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था, इसलिए यह निर्णय लिया गया कि ये बच्चे कहाँ शरण ले सकते हैं। पोलिश जनरल एंडर्स ने इस मामले पर चर्चा की और महाराजा ने पांच हजार बच्चों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार किया।”