पहाड़ में विलुप्त हो रही ढोल दमाऊ संस्कृति को बचाने की कवायद, ढोल दमाऊ प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन

संदीप कुमार

 

  • शिक्षा विभाग द्वारा चलाया जा रहा है पायलट प्रोग्राम

 

  • 9 विद्यालयों में स्कूली छात्र सीख रहे हैं ढोल दमाऊ

 

  • मास्टर ट्रेनरों ने सीखे ढोल दमाऊ की विधाएं

 

  • एक पाठ्यक्रम किया गया तैयार

 

चमोली। पहाड़ में विलुप्त हो रही ढोल-दमाऊ संस्कृति को बचाने के लिए सीमांत जनपद चमोली में अथक प्रयास किए जा रहे हैंl  जनपद में शिक्षा विभाग द्वारा जिला योजना के तहत एक पायलट प्रोग्राम चलाया जा रहा है, जिसके तहत जनपद के 9 इंटर कॉलेजों में छात्रों को ढोल-दमाऊ व मशकबीन का प्रशिक्षण देकर उत्तराखंड की संस्कृति को विलुप्त होने से बचाया जा रहा है। साथ ही छात्रों को ट्रेनिंग देकर उन्हें भविष्य में रोजगार के अवसर भी मुहैया हो सके इसके प्रयास किए जा रहे हैंl

राजकीय इंटर कॉलेज गोपेश्वर के सभागार में राष्ट्रीय नाटय कला साहित्य अकादमी पुरुस्कार से नवाजे गए प्रोफेसर डीआर पुरोहित के नेतृत्व में ढोल दमाऊ प्रशिक्षण की कार्यशाला आयोजित की गईl  इस कार्यशाला में 9 इंटर कॉलेजों से 4- 4 ट्रेनर व एक-एक विशेषज्ञ ने भाग लियाl  कार्यशाला में ढोल दमाऊ की विधाओं के साथ ढोल सागर व मशकबीन की बारीकियों से बच्चों को जानकारी दी गईl  बच्चों को ढोल के 750 तालों के बारे में विस्तार से बताया गया। इस दौरान ढोल दमाऊ कला को कैसे संजोयने को लेकर चर्चा की गई ताकि  आने वाली पीढ़ी को भी इसकी जानकारी हासिल हो सकेl  चमोली के अब अन्य क्षेत्रों के कई संस्थान इस विधा को बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं l

कार्यशाला में ढोल दमाऊ के साथ-साथ मशकबीन व बांसुरी की धुनों के बारे में भी जानकारी दी गईl  साथ ही एक पाठ्यक्रम भी क्रमवार तैयार किया गयाl जिससे स्कूलों में बच्चों को क्रमवार इसका प्रशिक्षण दिया जा सकेl  कार्यशाला को प्रोफसर डीआर पुरोहित सहित गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर संजय पांडे,  प्रसिद्ध ढोल वादक सोहनलाल टम्टा ने ढोल बिधा की जानकारी दी l

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