नमिता बिष्ट
उत्तराखंड राज्य के लिए 1 सितंबर 1994 शहीद हुए आंदोलनकारियों की याद में आज 28वां शहीद दिवस मनाया गया। इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा पहुंचे और उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। भले ही उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य को बने कई साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी वो दिन लोगों के दिलों में खटीमा कांड के जख्मों को ताजा कर देता है।
खटीमा गोलीकांड ने दी थी राज्य आंदोलन निर्माण की मांग को धार
उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को धार देने का काम खटीमा गोलीकांड ने किया था। साल 1994 में ‘राज्य नहीं तो चुनाव नहीं’ नारे का दौर था। ले मशालें चल पड़े हैं, लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के गीत पर पृथक राज्य की मांग को लेकर मशाल जुलूस निकाले जा रहे थे। तब 1 सितंबर 1994 को खटीमा में गोली कांड को अंजाम दिया गया था ।
निहत्थों पर चली थी गोलियां
1 सितम्बर 1994 को उत्तराखंड में काले दिन के रूप में याद किया जाता है। नए राज्य की मांग को लेकर 1 सितंबर 1994 को खटीमा की सड़कों पर हजारों आंदोलनकारियों उतरे थे। इस दौरान ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जनसभा हुई, जिसमें बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक शामिल थे। उनकी शांतिपूर्ण आवाज दबाने के लिए पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए निहत्थे उत्तराखंडियों पर गोली चलाई थी, जिसमें 7 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे, जबकि कई लोग घायल हुए थे।
राज्य निर्माण के लिए दी थी 7 लोगों ने शहादत
इस गोलीकांड में शहीद प्रताप सिंह मनोला, धर्मानंद भट्ट, भगवान सिंह सिरौला, गोपी चंद, रामपाल, परमजीत और सलीम शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। आज भी इस दिन के आते ही आंदोलनकारियों और उनके परिजनों का दर्द छलकता है।
शहादत के बाद मिला था राज्य
एक सितंबर 1994 की घटना के बाद ही उत्तराखंड आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी और इसी के परिणाम स्वरुप अगले दिन यानी 2 सितम्बर को मसूरी में गोली काण्ड की पुनरावृति हुई और यह आंदोलन तब एक बड़े जन आंदोलन के रूप में बदल गया। उस घटना के करीब छह साल बाद राज्य आंदोलकारियों का सपना पूरा हुआ और उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के रूप में नया राज्य अस्तित्व में आया।