Punjab Floods: पंजाब बीते चार दशकों में अपने सबसे बुरे बाढ़ संकट से जूझ रहा है, मूसलाधार बारिश भले ही थम गई हो और पानी धीरे-धीरे कम हो रहा हो, लेकिन हजारों परिवारों के लिए संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। बाढ़ से क्षतिग्रस्त मकान, तबाह फसलें और बढ़ते स्वास्थ्य जोखिम पूरे सूबे की बेहद भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं। अजनाला में बाढ़ का पानी भले ही कम हो गया हो, लेकिन अपने पीछे तबाही के निशान छोड़ गया है। जहां कभी घर हुआ करते थे, वहां अब केवल ढहे हुए ढाँचे रह गए हैं।
किसान उस तबाही का मंजर बयां कर रहे हैं, जिसने उनके खेतों को बर्बाद कर दिया, वहीं कुछ यह भी कह रहे हैं कि उन्हें अभी भी यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह क्या हुआ क्योंकि उन्हें बाढ़ की पहले से कोई चेतावनी नहीं दी गई थी।
लोगों का कहना है कि बाढ़ के पानी ने उनकी जीवन भर की जमा-पूंजी और संपत्ति को बर्बाद कर दिया, जिससे उनका सब कुछ खत्म हो गया। यह नुकसान और भी अधिक दुखदायी है क्योंकि कई लोगों का कहना है कि उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। बाढ़ से किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उनकी खड़ी फसलें बर्बाद हो गई हैं, मवेशी पानी में बह गए और यहां तक कि बचा हुआ पशु चारा भीगकर खराब हो गया।
पंजाब भर के गांवों में जीवनयापन पूरी तरह से समय पर मिलने वाली सहायता पर निर्भर है और स्वयंसेवक ही ज्यादातर राहत सामग्री उपलब्ध कराते हैं। कई लोगों के लिए राशन किट, बर्तन, दवाइयाँ और अन्य बुनियादी जरूरतों के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना भी अपमानजनक है। लोगों की मुसिबत महज भोजन या सुरक्षित ठिकानों तक ही सीमित नहीं है। पानी धीरे-धीरे कम हो रहा है, जिससे पानी के बैक्टिरिया से पैदा होने वाली बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। हालांकि स्वैच्छिक कोशिशों से लोगों की सुरक्षा और देखभाल के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाए गए हैं, लेकिन इस मामले में सरकार की ओर से कुछ खास नहीं किया जा रहा है।
दूध से लेकर मच्छर भगाने वाली दवाओं, बर्तनों से लेकर माचिस तक, गैर सरकारी संगठन और स्वयंसेवक अपनी कोशिश ये तय कर रहे हैं कि इन सुविधाओं से कोई भी वंचित न रहे।अमृतसर के बाढ़ प्रभावित इलाकों में फोकस न केवल खाद्य वितरण पर है बल्कि संभावित स्वास्थ्य संकट को भी टालने की कोशिश की जा रही है।
प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों ने बाढ़ के बाद फैलने वाले प्रकोप के जोखिम को कम करने के लिए जरूरी चिकित्सा किट भी बांटना शुरू कर दिया है। पंजाब में इस बाढ़ ने अब तक 37 लोगों की जान ले ली है और साढ़े तीन लाख से ज़्यादा लोगों को प्रभावित किया है। बाढ़ में 1.75 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा जमीन पर लगी फसलें भी बर्बाद हो गई हैं।
पीड़ित गुरिंदर सिंह ने बताया कि “साल 1988 में भी ऐसी ही बाढ़ आई थी, लेकिन 2025 की बाढ़ ने और ज्यादा तबाही मचाई। इस वजह से हमारे खेत कम से कम एक साल तक खाली रहेंगे। अब हमारे पास कोई उम्मीद नहीं बची है। हम अपने खाने के लिए थोड़ी-बहुत बुआई तो कर लेंगे, लेकिन हमारी हालत बहुत खराब है।”
“हम घर पर थे, हमें पहले से कोई सूचना नहीं थी। जैसे ही पानी आया, हमने कुछ कपड़े उठाए और बाकी सामान वहीं छोड़ दिया। पानी दीवारों के ऊपर से बह रहा था। हमारा सब कुछ बहा ले गया। हमने जो कपड़े पहने हुए हैं, वे हमें स्वयंसेवकों ने दिए। हमारा सारा सामान बह गया। हमें मवेशियों के लिए चारा इकट्ठा करने में पूरा साल लग जाता है। वो सब एक ही दिन में बर्बाद हो गया। अभी तो सिर्फ आम लोग ही हमारी मदद कर रहे हैं। सरकार भी हमारी मदद के लिए आगे आए, तो शायद हालात थोड़े बेहतर हों।”
इसके साथ ही पीड़ित सुखदीप कौर ने कहा कि “हम किसी तरह भागकर अपनी और अपने बच्चों की जान बचाने में कामयाब रहे। हम बच्चों के साथ छत पर चले गए। हालांकि हमारी छत अच्छी हालत में नहीं है, फिर भी हम इतने दिनों तक उनके साथ वहीं रहे। हमारे मवेशियों की हालत भी बहुत खराब है। हम लौटने के बाद ही उनकी देखभाल कर पाए। हम जो खा रहे हैं, वही उन्हें भी खिला रहे हैं। हमारी हालत वाकई बहुत खराब है। हमारी सारी फसल बर्बाद हो गई है। हमारे बच्चों की पढ़ाई भी पूरी तरह रुक गई है।”
“रामदास में पानी थोड़ा कम हुआ है। हम मेडिकल किट लेकर आए थे। प्रशासन ने हमें एलर्जी की कुछ दवाइयां, बुखार की कुछ दवाइयां और पांच-सात जरूरी दवाइयां किट में शामिल करने को कहा था। प्रशासन के निर्देशानुसार आज ये दवाइयां बांटी गईं। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। बाबा जी के आशीर्वाद से पानी कम हो रहा है, लेकिन बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं। डेंगू का भी ख़तरा है। यहां काम उसी तरह चलता रहेगा जैसा प्रशासन से दिशा-निर्देश मिलेंगे।”