Ladakh: 26वें कारगिल विजय दिवस से एक दिन पहले, 1999 के युद्ध में लड़ने वाले बहादुर सैनिकों के साहस और बलिदान को सलाम करने के लिए द्रास के कारगिल युद्ध स्मारक पर तैयारियां चल रही हैं। शहीद सैनिकों के परिवार स्मारक पर इकट्ठा हुए और उन्होंने देश की रक्षा के लिए जान न्योछावर करने वाले अपने वीर सपूतों के बलिदान को याद किया।
कई लोगों के लिए स्मारक पर जाना शहीदों से जुड़ी उनकी यादों को ताजा कर देता है। साथ ही ये बात उन्हें गर्व से भर देती है कि उनके अपनों ने देश की सेवा में अपने प्राणों की आहुति देने में जरा भी संकोच नहीं किया, कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। 1999 में इसी दिन भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ कामयाबी के साथ खत्म करने का ऐलान किया था। पाकिस्तान के साथ कारगिल की बर्फीली चोटियों पर लगभग तीन महीने तक चले युद्ध के बाद विजय की घोषणा की गई थी, भारत के जांबाज सैनिकों ने तोलोलिंग और टाइगर हिल जैसे ऊंचाई वाले इलाकों पर भी तिरंगा लहराया था।
सिपाही सुरेश कुमार की बेटी पूजा डूडी ने बताया कि “आज हम उनकी 26 साल की यहां पर श्रद्धांजलि के लिए प्रस्तुत हुए हैं, कारगिल विजय दिवस पर और हमें बहुत गर्व है कि वह हमारे देश के लिए कुर्बान हुए और उन्होंने छोटी सी बहुत ही छोटी सी ही उम्र में वो यहां पर फौज में भर्ती हुए थे और उनका एक ही मकसद था जैसे उन्होंने अपने फादर को देखा, मेरे दादा जी को कि मुझे भी देश के लिए कुछ करना है, भारत माता के लिए कुछ करना है और वो यहां पर आए बेझिझक के और हम सबको मुझे मेरी मममां को, चाचा को भाई को हमें सबको उन पर बहुत ज्यादा गर्व है।
एक सिंगल मदर रहकर उन्होंने फैमिली को आगे परसियू किया, उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया, कामयाब करा और जो पापा ने सैक्रिफाइस किया उसके लिए कुछ शब्द नहीं है लेकिन जो पीछे रह जाते हैं, जो फैमिली मेंबर्स हैं, मुझे लगता है उनका और भी ज्यादा उनसे भी ज्यादा बड़ा एक सैक्रिफाइस है, उनके बिना रहना और अपनी लाइफ को आगे कंटिन्यू करना।”
प्रणिता राय, हवलदार मानबहादुर राय की बेटी “मैं बस इतना कह सकती हूं कि हमें बहुत गर्व है कि उन्होंने युद्ध के दौरान अपनी जान दे दी। लेकिन हमारे दिलों में हमेशा एक खालीपन रहता है कि हमने किसी अपने को खो दिया है। पापा को घर छोड़े हुए बहुत समय हो गया है। कभी-कभी बहुत अकेलापन महसूस होता है।”
सिपाही दिनेश भाई वाघेला के भाई राजेश वाघेला ने बताया कि “पहली बार आए हैं, 27 सालों में पहली बार हमकों यहां आने का चांस मिला है। प्राउड फील करते हैं, कारगिल वॉर विजय दिन के दौरान हमको यहां इनवाइट किया गया है सेना की ओर से। यहां आने के बाद ऐसा महसूस होता है कि यहां पर हमारे बड़े भइया घूमते हैं, यहां पर ही हमारे बड़े भइया बसे हैं, यहां पर ही हमारे बड़े भइया रहते हैं। बहुत प्राउड फील करते हैं, वह टीचर थे और टीचर की जॉब छोड़कर सेना में जुड़े हुए थे और सेना में जुड़ने के बाद वहां… रेजिमेंट में सागर में ट्रेनिंग ली थी और तीन साल की ड्यूटी में यहां पोस्टिंग हुई थी। एलएमजी गन शूटर के नाइट के इंडिया के सेकंड नंबर के वो शूटर थे।
जब वो 21 दिन के बाद उनको डायरी लिखने का शौक है, जब वो डायरी हमारे पास आई तो उसमें लिखा हुआ है कि 21 दिन के बाद में नीचे आया हूं पर मैं यह डायरी अब मैं ऊपर जाऊंगा तो मुझे लग नहीं रहा कि मैं वापस आऊंगा, नहीं आऊंगा। मैं मेरे साथी को ये डायरी देकर जाता हूं कि अगर मुझे कुछ होता है तो ये डायरी मेरी फैमिली तक पहुंचाना। वो डायरी 26 जून तक लिखा था और 28 जून को रात को उनका शहीदी हो गई थी।”