Jammu-Kashmir: अपनी बेहतरीन कलाकारी और बुलंद हौसले के बूते श्रीनगर के मीर बेहरी इलाके में कालीन की बुनाई करने वाली महिलाएं अलग पहचान बना रही हैं। इतना ही नहीं ये महिलाएं अपने अंदाज से सामाजिक रुढ़ियों को भी चुनौती दे रही हैं, वैसे तो ज्यादातर पुरुष कालीन बुनाई का काम करते हैं। लेकिन ये बुनकर महिलाएं अपनी काबिलियत और हुनर की मिसाल पेश करते हुए हर बाधा को पार कर रही हैं।
कश्मीर की कालीन इंडस्ट्री की देश और दुनिया में खास पहचान है। ये व्यापार फल-फूल रहा है, माना जाता है कि कालीन बुनाई की ये खास कला ईरान से घाटी तब पहुंची जब कश्मीर के नौवें सुल्तान, जैन-उल-अबिदीन लोगों को इसे सिखाने के मकसद से मध्य, एशिया से कालीन बुनकरों को यहां लाए।
ये बिजनेस आज भले ही बुलंदियों पर हो लेकिन बुनकरों का कहना है कि हर दिन सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक काम करने के बावजूद उनकी खास कमाई नहीं हो पाती। कालीन इंडस्ट्री जम्मू कश्मीर के लाखों लोगों के लिए रोजी-रोटी कमाने का जरिए है। आंकड़ों के मुताबिक एक लाख से ज्यादा लोग इस इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। इनमें से ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से हैं।
डायरेक्टर हैंडीक्राफ्ट्स एंड हैंडलूम्स महबूब शाह का कहना है कि “जो हमारे 450 सेंटर चलते हैं, सब सेंटर्स में जिनकी इनटेक कैपेसिटी 20 पर सेंटर है, उन सब सेंटर्स में ट्रेनीज जो हैं हमारी लेडीज हैं। उसके अलावा जो है हमारी सोसाइटीज बनीं उसमें 50 परसेंट के करीब जो है सोसाइटीज वुमेन डॉमिनेटेड है, तो ये ऐसा है सिलसिला कि ट्रांजिशन हो रहा है, लड़कियां सामने आ रही हैं और क्रॉफ्ट का स्किल जो है आगे बढ़ा रही हैं।”