Chhattisgarh: बिलासपुर में कुछ छात्र बना रहे हैं हर्बल गुलाल

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुछ छात्र इन दिनों एक नई गतिविधि कर रहे हैं। उनके मुताबिक ये न सिर्फ मनोरंजक है, बल्कि उनके भविष्य के लिए भी उपयोगी है। ये छात्र स्वावलंबी छत्तीसगढ़ योजना के तहत चुकंदर, पालक, लाल अमरंथ और दूसरे प्राकृतिक सामानों से होली के लिए हर्बल गुलाल बना रहे हैं।

20 छात्रों की टीम ने चार रंगों – हरा, गुलाबी, पीला और त्वचा के टोन में दो क्विंटल गुलाल बनाने के लिए 20,000 से 25,000 रुपये का निवेश किया है। इन रंगों की मांग ज्यादा होती है। इस पहल से कमजोर तबके के छात्रों की मदद भी हो सकती है। इस बार लगभग दो क्विंटल गुलाल बनाया है। और ये विश्वविद्यालय के सभी विभागों में डिस्ट्रिब्यूट होगी। ये गुलाल पर्यावरण के अनुकूल है। इसे बनने में चार से पांच दिन लगते हैं।

छात्रा उर्मी वर्मा ने कहा, “गुलाल बना के हमको बहुत अच्छा लग रहा है। इसमें हमको बहुत प्रेरणा मिल रही है। जैसे कि टीम वर्क। स्किल डेवलपमेंट हो रहा है। बहुत न्यू-न्यू एक्सपीरिएंस कर रहे हैं हम। जो भी इनकम हम यहां से डेवलप करेंगे वो हमारे जरूरतमंद स्टूडेंट के फीस पेमेंट के लिए रहेगा। बहुत अच्छा लग रहा है इसमें। नैचुरल कलर्स हम यूज कर रहे हैं। जैसे, बीटरूट, पालक और लाल भाजी। बहुत ही अच्छी फीलिंग आ रहा है कि अपना बनाया गुलाल लोगों के गालों पे खिलेगा। और इससे जो आय होगा वो हमारी फीस का जरिया बनेगा। तो बहुत अच्छा लग रहा है हमें।

ग्रामीण प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास विभाग के प्रोफेसर डॉ. दिलीप कुमार ने जानकारी देते हुए कहा, “इसको बनाने की जो प्रक्रिया है, सबसे पहले कलर का एक्सट्रैक्ट करना पड़ता है। अलग-अलग चीजों से हम लोग कलर का इस्तेमाल करते हैं। कलर निकालने के बाद उसे अरारूट के आटे में उसका कलरिंग का काम करते हैं। कलरिंग करने के बाद उसको सुखाने में हमको समय लगता है। सुखाने की प्रक्रिया कम से कम दो से तीन दिनों की प्रक्रिया है। सूखने के बाद फिर से इसको ग्राइंड किया जाता है और ग्राइंड करके फिर इसको पैकेजिंग करके हम मार्केट में उतारते हैं। तो इस प्रकार से पूरी प्रक्रिया देखें तो चार से पांच दिनों की प्रक्रिया होती है।”

शिक्षक शशि केश का कहना था कि, “शहर के बाहर गुलालों को देखेंगे तो वहां पे केमिकल का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। आप केमिकल के संपर्क में आते हैं, जबकि यहां के गुलाल, जो हमारे दिलीप सर के अंडर में बनाया गया है, इसमें अरारूट का इस्तेमाल किया गया है। साथ ही जितने भाजी हैं, जैसे पालक, चुकंदर और साथ ही साथ पलाश के पौधे। बच्चे खुद जाकर मंदिरों से और शादी के समारोह से फूल इकट्ठा करके लेकर आए और उससे इन्होंने गुलाल बनाया। तो ये आपके फेस या स्किन पर किसी तरह के इंफेक्शन को रोकेगा।”

छात्रों का कहना है कि इस गतिविधि से उन्हें वास्तविक जीवन में कौशल का प्रशिक्षण मिल रहा है, जो निश्चित रूप से भविष्य में उनकी मदद करेगा। इस साल होली 14 मार्च को मनाई जाएगी।

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