Rajasthan: होली के रंगों से सराबोर हुई पर्यटन नगरी सांभर

Rajasthan: होली के रंग में सराबोर ये तस्वीरें राजस्थान के जयपुर के पास सांभर शहर की है, जहां ढोल और नगाड़ों के साथ हर ओर होली की रंगत दिखने लगी है। नंदी पर सवार भगवान नंदकेश्वर महादेव की सवारी जब सांभर की गलियों से गुजरी तो लोग रंग गुलाल उडाते हुए ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाचने लगे।

जयपुर से 70 किलोमीटर दूर सांभर में 1700 साल से होली की ये अनूठी परंपरा चली आ रही है। फागुन के महीने में सांभर नगरी भगवान शिव की भक्ति में डूब जाती है। होली का ये त्योहर यहां सात दिन चलता है। जिसमें हिंदू, मुस्लिम और सभी समुदायों के लोग जमा होते हैं। इस दौरान इसे भगवान शिव के विवाह के रूप में मनाया जाता है।

सांभर में होली की ये परंपरा चौहान वंश से चली आ रही है। इसमें होली से पहले नंदकेश्वर की सवारी निकाली जाती है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से काफी संख्या में सैलानी आते हैं। ढोल और ताशे की थाप पर लोग जमकर थिरकते हैं। कुछ लोग इसे देश का चलता फिरता मेला भी कहते हैं।

इस मेले में बड़ी संख्या में लोग जोश और उमंग के साथ हिस्सा लेते हैं। इस दौरान हर ओर गुलाल और फूलों की बारिश नजर आती है। देर रात तक चलने वाले इस आयोजन के दौरान मंजीरों की थाप पर लावणिया गीत गाते लोग झूमते नजर आते हैं।

गोविंद अग्रवाल, स्थानीय निवासियों ने कहा, “सांभर की होली वास्तव में रंगों का एक त्योहार है लगभग 2000 वर्षों से ये राजा महाराजाओं के जमाने से जोधपुर और जयपुर दरबार उस समय से ही ये चलता है। यहां की होली विश्व प्रसिद्ध है। यहां तीन तो खेल होते हैं यानी पूरी की पूरी जनता और आस-पास के रहने वाले जो ग्रामीण लोग हैं पूरे सात दिनों तक यहां पर मजा करते हैं। ऐसी होली आपने राजस्थान में कहीं भी नहीं होती। जैसे मथुरा की होली, लट्ठमार होली प्रसिद्ध है। जैसे कि यहां पर नंदकेश्वर की होली के नाम से ये जाना जाता है।”

“ये त्योहार शिव के विवाह के रूप में मनाया जाता है। आरंडी वाले रोड नंदकेश्वर की सवारी निकलती है जो कि एक विवाह के प्रतीक के रूप में होता है। छोटे बाजार के तरफ से नंदकेश्वर जो है यूं समझिए कि वर पक्ष के रूप में निकलता है और उसके बाद जैसे ही बड़े बाजार में आता है वो उनका जो है संबंध एक ससुराल के हिसाब से हो जाता है। हिन्दू मुसलमान सभी लोग उनका स्वागत करते हैं, पुष्प वर्षा करते हैं, संध्या को आरती होती है और आरती के बाद में ये मेला विसर्जित हो जाता है।

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