ये गांव आज भी संस्कृत भाषा को जिंदा रखने में दे रहे अपना अहम योगदान 

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाएं दर्ज हैं। जिसमें संस्कृत भाषा को भी विशेष दर्जा दिया गया है। लेकिन आज देश में संस्कृत बोलने वालों की तादाद लगातार कम होती जा रही है। आलम यह है कि 2001 की जनगणना में सिर्फ 14,135 लोगों ने ही पहली भाषा के तौर पर संस्कृत का नाम लिया है। कुल आबादी का यह मात्र नगण्य हिस्सा है। हालांकि भारत में आज भी ऐसे गांव हैं जिन्होंने इस भाषा को अपने अंदर अभी भी संजोए रखा है। जिसमें कर्नाटक का एक मत्तूर गांव भी शामिल है। 

मत्तूरु गांव का हर इंसान बोलता है संस्कृत

कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित मत्तूरु गांव एक ऐसा गांव है, जहां का हर बाशिंदा संस्कृत में ही बात करता है। क्या बच्चा, क्या बूढ़ा और क्या जवान चाहे वो किसी भी धर्म का ही क्यों ना हो, सभी धाराप्रवाह संस्कृत में बात करते हैं। इतना ही नहीं गांव वालों की वेशभूषा देखकर ही आपको लगेगा कि चाणक्य के दौर वाले भारत में पहुंच गए हैं। सिर्फ पहनावे को ही नहीं इस गांव के लोगों ने दुनिया की सबसे प्राचीनतम सभ्यता और भाषा को भी सहेज कर रखा हुआ है।

हर घर में मिलेगा संस्कृत का विद्वान

मात्तुर गांव में करीब 300 परिवार रहते हैं। यहां हर घर में आपको संस्कृत का विद्वान जरूर मिलेगा। हालांकि गांव की मातृभाषा कन्नड़ है, फिर भी यहां साधारण जीवन शैली वाले लोग संस्कृत में ही बात करते हैं। दरअसल इस गांव में संस्कृत प्राचीनकाल से ही बोली जाती है। हालांकि बाद में यहां के लोग भी कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे, लेकिन 33 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया। जिसके बाद गांव के लोग संस्कृत में ही वार्तालाप करने लगे। इस गांव के बच्चों को 10 साल पूरा हो जाने के बाद वेदों का शिक्षण दिया जाता है। यहां के कई संस्कृतभाषी युवा आज आईटी इंजीनियर हैं और बड़ी-बड़ी कंपनियों में कार्यरत हैं। जिसमें कुछ सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं तो कुछ बड़े शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं विदेशों से भी कई लोग संस्कृत सीखने के लिए इस गांव में आते हैं। 

घरों की दीवारों पर मिलेगी संस्कृत ग्राफीटी

मत्तूरु गांव की एक और दिलचस्प बात यह है कि इस गांव के घरों की दीवारों पर संस्कृत ग्रैफीटी पाई जाती है। यहां दीवारों पर पेंट किए गए प्राचीन स्लोगन्स जैसे “मार्गे स्वाच्छताय विराजाते, ग्राम सुजानाह विराजन्ते” जिसका अर्थ है: एक सड़क के लिए स्वच्छता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना की अच्छे लोग गाँव के लिए। वहीं कुछ घरों के परिवारों के दरवाजे पर तो “आप इस घर में संस्कृत बोल सकते हैं” काफी गर्व से भी लिखा होता हैं। यह गांव गमाका कहानी कहने की अनोखी और प्राचीन परंपरा का भी समर्थन करता है। इतना ही नहीं गांव के विद्यालयों में जिले के सबसे अच्छे अकादमिक रिकॉर्ड भी हैं।   

भारतीय संस्कृति की आत्मा है संस्कृत

भारतीय संस्कृति की आत्मा कही जाने वाली संस्कृत भाषा के अपने ही मायने हैं और यह वेदों की भाषा रही है इसलिए इस लिहाज से भाषा के रूप में संस्कृत को सबसे पुरानी भाषा माना जाता है। संस्कृत भाषा भारतीय-आर्यन समूह से है और यह भारतीय और यूरोपीय भाषाओं की जननी मानी जाती है। इससे कई आधुनिक भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी, मराठी, सिंधी, पंजाबी, बगला आदि का जन्म हुआ है। इतना ही नहीं यूरोपीय खानाबदोशों की रोमानी भाषा का उद्गम भी संस्कृत में ही हुआ। प्राचीन भारत में, यह विद्वानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य भाषा थी और देवभाषा-देवताओं की भाषा के रूप में भी जानी जाती है। व्याकरण के आधार पर संस्कृत दुनिया की सबसे ज्यादा वैज्ञानिक भाषा भी है।

संस्कृत को जिंदा रखने में दे रहे अपना अहम योगदान 

दुनिया में संस्कृत से प्रभावशाली कोई भाषा नहीं हुई है। मानव सभ्यताओं के इतिहास में ज्ञान-विज्ञान और दर्शनशास्त्रों से भरे ग्रंथों और उत्कृष्टतम साहित्य का जितना सृजन संस्कृत भाषा ने किया है, उतना आज तक किसी भी अन्य भाषा के लिए संभव नहीं हुआ है। इसलिए तो आज भी ये गांव संस्कृत को जिंदा रखने में अपना अहम योगदान दे रहे है। सिर्फ दक्षिण भारत में कर्नाटक का ये गांव देश में एकलौता गांव नहीं है। राजस्थान के बांसवाड़ा का कनौदा गांव, मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले का झिरी गांव और ओडिसा के केओंझार जिले का श्याम सुंदरपुर गांव भी इसी परंपरा में आते हैं। जो संस्कृत को लेकर उम्मीद की एक नई किरण जगा रहे हैं।

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