भारतीय साहित्य का एक आवारा मसीहा, जिसके एक उपन्यास पर कई बार बनी ये फिल्म

नमिता बिष्ट

साहित्यकार, साहित्य और सिनेमा के बीच शुरुआती दिनों से ही करीबी सम्बन्ध रहा है। 1912-13 में दादा साहब फाल्के ने सत्य हरिश्चंद्र के जीवन पर मूक फिल्म बनाकर भारतीय सिनेमा की नींव रखी थी। तब से बॉलीवुड में हॉलीवुड और टॉलीवुड की फिल्म से इंस्पायर होकर फिल्म बनाने का क्रेज है। लेकिन फिल्म निर्माता पहले और अब भी फिल्म की कहानी, मशहूर साहित्यकारों और लेखकों के किताबों से लेते आए हैं। आज हम आपको ऐसी एक उपन्यासकार के बारे में बताने जा रहे है जिनके एक उपन्यास पर बॉलीवुड में कई बार फिल्में बनी है। जी हां, हम बात कर रहे है सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की।

भारतीय साहित्य के सम्मानित नामों में से एक

स्वतंत्रता पूर्व युग में कई लेखकों और उपन्यासकारों ने भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रेरित किया। उन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से अपनी भागेदारी दर्ज की। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय भी भारतीय साहित्य के उस अध्याय में सबसे सम्मानित नामों में से एक हैं। शरतचंद्र चटर्जी मूल नाम जिन्हें शरत चंद्र चट्टोपाध्याय भी कहा करते थे। एक ऐसे उपन्यासकार और लघु कथाकार थे जिनका पूरा जीवन यायावरी में बीता। एक ऐसे लेखक जिन्हें बंगाली महिलाओं के प्रति गहरा लगाव और सम्मान था।

आवारा मसीहा ‘शरतचंद्र’ की जीवनी

आवारा मसीहा लेखक विष्णु प्रभाकर जी के द्वारा लिखित है वास्तव में यह महान कथाकार ‘शरतचंद्र’ की जीवनी है, जिसे विष्णु प्रभाकर ने लिखा है लेकिन इस पाठ में केवल ‘आवारा मसीहा’ उपन्यास के प्रथम पर्व ‘दिशाहारा’ का अंश ही प्रस्तुत है। उपन्यास के इस अंश में लेखक ने शरदचंद्र के बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक के अलग-अलग पहलुओं को वर्णित करने का प्रयास किया है। जिसमें बचपन की शरारतों में भी शरद के एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। उनके रचना संसार के समस्त पात्र हकीकत में उनके वास्तविक जीवन के ही पात्र हैं।

प्रसिद्ध उपन्यासों पर बॉलीवुड में कई फिल्में

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के कई प्रसिद्ध उपन्यासों पर बॉलीवुड में फिल्में बन चुकी हैं। जिसमें साल 1974 में चरित्रहीन उपन्यास पर इसी नाम से फ़िल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर इसी नाम से तीन बार फ़िल्म देवदास बन चुकी है।

देवदास पर तीन बार बन चुकी फिल्म

पहली फ़िल्म देवदास में कुन्दन लाल सहगल ने अभिनय किया था। दूसरी फिल्म देवदास में दिलीप कुमार और वैजयन्ती माला बतौर कलाकार थे। जबकि तीसरी फ़िल्म देवदास में शाहरुख़ ख़ान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय ने अभिनय किया था। इसके अलावा 1953 और 2005 में फ़िल्म परिणीता बनी हैं। वहीं साल 1969 में ‘बड़ी दीदी’ और ‘मंझली बहन’ आदि पर भी फ़िल्में बन चुकी हैं।

शरतचंद्र का ननिहाल भागलपुर में बीता बचपन

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 को पश्चिम बंगाल राज्य के हुगली जिले के देवानंदपुर गांव में हुआ था। अपने माता-पिता के शरतचंद्र नौ भाई-बहन थे। शरतचंद्र के पिता एक मस्त मौला, बेफिक्र और स्वभाव से घुमक्कड़ इंसान थे जो कि एक नौकरी पर टिककर नहीं रह पाते थे। यही कारण था कि उनकी आर्थिक स्थति ठीक नहीं थी और इसलिए शरतचंद्र का ज्यादातर जीवन अपने ननिहाल भागलपुर में बीता था। वहीं उनकी शिक्षा दीक्षा भी हुई थी।

पहला उपन्यास “बासा”.. नहीं हुआ प्रकाशित

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय 1893 में जब हुगली कूल के विद्यार्थी थे तभी उनकी साहित्य में रुचि जागृत होने लगी थी। 1894 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। इसी समय उन्होंने भागलपुर की साहित्य सभा की स्थापना की। यही वह समय था जब उन्होंने बासा (घर) नाम से अपना पहला उपन्यास लिखा जो कि कभी प्रकाशित नहीं हुआ था।

आर्थिक तंगी के चलते कॉलेज की पढ़ाई रही अधूरी

आर्थिक तंगी के चलते उनकी कॉलेज की शिक्षा अधूरी रह गईं। लेकिन पढ़ाई छोड़ने के बाद भी वह साहित्य सेवा करते रहे और उनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की लेखनी का शरत पर गहरा प्रभाव पड़ा। बता दें कि 1903 में प्रकाशित हुई शरतचंद्र की पहली लघु कहानी मंदिर, जिसने कुंतोलिन पुरस्कार जीता था, उस समय शरतचंद्र रंगून (अब यांगून, बर्मा) में थे।

1921 में असहयोग आंदोलन में लिया हिस्सा

शरतचंद्र ने अपने करियर की शुरुआत बनेली एस्टेट के बंदोबस्त अधिकारी के सहायक के रूप में की थी। बाद में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अनुवादक के रूप में और बर्मा रेलवे के लेखा विभाग में एक क्लर्क के रूप में काम किया। शरत चंद्र बंगाल कांग्रेस से भी जुड़े थे। 1921 में उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लिया और हावड़ा जिला कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।

ये हैं शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की प्रमुख रचनाएं

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन में कई उपन्यास लिखे थे। उनमें ‘पंडित मोशाय’, ‘बैकुंठेर बिल’, ‘मेज दीदी’, ‘दर्पचूर्ण’, ‘श्रीकान्त’, ‘अरक्षणीया’, ‘निष्कृति’, ‘मामलार फल’, ‘गृहदाह’, ‘शेष प्रश्न’, ‘दत्ता’, ‘देवदास’, ‘बाम्हन की लड़की’, ‘विप्रदास’, ‘देना पावना’ आदि प्रमुख हैं। उन्होंने बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर ‘पथेर दावी’ उपन्यास लिखा। पहले यह ‘बंग वाणी’ में धारावाहिक के रूप में निकाला, फिर पुस्तकाकार छपा तो तीन हजार का संस्करण तीन महीने में समाप्त हो गया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया था।

शरतचंद्र के उपन्यासों में नायिकाएं रही अधिक ताक़तवर

उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा लिखित उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कहा जाता है कि उनके पुरुष पात्रों से उनकी नायिकाएं अधिक ताक़तवर हैं। शरतचंद्र ने जिस प्रकार पुरुष और स्त्री के संबंधों को एक नए आधार पर स्थापित करने के लिए पक्ष प्रस्तुत किया है, उसी से शरतचंद्र को लोकप्रियता मिलीं। शरतचंद्र ने उपन्यासों के साथ ही नाटक, गल्प और निबन्ध भी लिखे। वहीं 16 जनवरी 1938 को कोलकाता में उनका निधान हो गया।

शरतचंद्र के उपन्यासों पर बन चुकी हैं कई फिल्में

शरतचंद्र के कई प्रसिद्ध उपन्यासों पर बॉलीवुड में भी फिल्में बनी हैं। उनके ‘चरित्रहीन’ उपन्यास पर वर्ष 1974 में इसी नाम से फ़िल्म बनी थी।  उसके बाद देवदास को आधार बनाकर इसी नाम से तीन बार फ़िल्म देवदास बन चुकी है।  पहली फ़िल्म देवदास में कुन्दन लाल सहगल ने अभिनय किया था। दूसरी देवदास में दिलीप कुमार और वैजयन्ती माला बतौर कलाकार थे। तीसरी फ़िल्म देवदास में शाहरुख़ ख़ान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय ने अभिनय किया। इसके अलावा 1953 और 2005 में फ़िल्म परिणीता बनी। वर्ष 1969 में ‘बड़ी दीदी’ और ‘मंझली बहन’ आदि पर भी फ़िल्में बन चुकी हैं।

 

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